Page 104 - kaushal
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अफ यहा नहीॊ आकर्षण, मा ना यही हमा।


तमं नहीॊ सुहाती अऩनी भािी अऩना गाॊि।

िेर् यह गई िह ्भरनतमाॊ औय उनके नाभ।


खो गमा कहा फचऩन का िह अभत आनॊद


जो र्भरता था सखा औय ननज रोगं सॊघ।

हदन-हदन खेरा कयता था गाॊि की गर्रमं भं।


खुि था फचऩन उनके सॊग ही यॊगयर्रमं भं।


सुख-दुख भं एक दूसये का साथ ननबाते थे।

ककसी की उवननत देख न कबी ऩछताते थे।


िे जीिन का सफ दुख ि तभ हय रेते थे।


खेर-खेर भं भन को भॊहदय कय देते थे।


धीयज मादव

कनन्ठ अनुवादक















सबी बायतीम बार्ाओॊ के र्रए महद कोई एक र्रवऩ आि्मक है तो िो


देिनागयी ही हो सकती है – जज्िस क्ण्वाभी अय्मय












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