Page 102 - kaushal
P. 102
फॊददशं




िाभ ढरी तो ्जॊदगी का एक हदन औय फीता,


ना जाने तमा हाया औय तमा जीता।
दूसयं को रुबाने भं खुद को खोते गए,

अऩनी इ्छाओॊ का दामया मूॊ ही सभेिते गए।

कपि भं हदमे ने कपय से भन भं साॊस री,

उम्भीद के गर्रमाये को भध्मभ सी भु्कान दी।

सोचते हं फीते ितत को तो कोसते हं,

अनुबि साथ यहेगा, मे बूर जाते हं।

‘फाद’ को ऩाने की रारसा भं बूरे हं ‘अबी’ को,

खुद ऩे हं फॊहदिं रगाई औय कोसते हं सबी को।





गरयभा त्ररऩाठी

आशुसरवऩक ‘घ’














हहॊदी ही उ्तय औय दषऺण को जो़ने िारी सभथष बार्ा है।


– अन्त शमनभ












85
   97   98   99   100   101   102   103   104   105   106   107