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ददष की छामा गहया गई हं।

न स़क ं न दिाईमाॊ न र्िऺा न योजगाय,


्जॊदगी के सॊघर्ष भं छ ू ि गमा है भेया गाॊि।

र्भि गए हं गाॊि के गर्रमाये,

र्भि गए हं सॊ्क र नत सॊ्काय।


विकास की फदननमत दयकते ऩहा़,

उपनती नहदमाॊ फेचैन घय।


ऩरामन-ऩरामन-ऩरामन की यफ्ताय,

मह िब्द ककतना है भार्भषक।

आॊस फॊधी है भाॊ फाऩू की फुझती आॊखं भं,


रौि आएॊगे इस वियासत भं।

अऩनं से रफछ ु ़ने का,


र्सरर्सरा आज बी जायी है।

गीत छ ू ि गए, ऩे़ छ ू ि गए, नदी छ ू ि गई,

फ़े फुजुगं की बािनाएॊ छ ू ि गई।


सुविधाओॊ की तराि भं,

फाध्म है ज़ं से दूय यहने को।

मे स़क ं जाती तो हं िहय तक,


रेककन िही स़क कबी नहीॊ जाती गाॊि तक।



गाॊधायी ऩाॊगती


सहामक ननदेशक,

के ्रीम सॊसाधन ववकास भॊरारम,

ऩज्चभी खॊड-7, आय.क े.ऩुयभ,


नई दद्री-110066



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