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आचामि हजायी रसाद ्वववेदी के ननफॊधं भं भानवतावाद



आचामष ्वििेदी के ननफॊध िैचारयक हं अथिा िैम्ततक, उनभं उनका ्िमॊ

का ृ्टिकोण रधान यहता है। इस ृ्टिकोण को महद ककसी िाद का नाभ देना हो


तो भानितािाद से अगधक उऩमुतत औय सिीक अवम कोई सॊऻा हो ही नहीॊ

सकती। महद मह कहा जाए कक भानि औय भानितािाद ्वििेदी जी के ननफॊधं का

भेुदॊड हं तो अनतिमो्तत नहीॊ होगी। ्वििेदी जी के रर्रत ननफॊधं भं सिषि


भानिीम भूकमं की अर्ब्म्तत र्भरती है।

्वििेदी जी के भानितािादी दिषन की भूर अिधायणा है कक सम्ऩूणष सर्टि के

विकास का क ं र र्सपष औय र्सपष भानि ही है। भनुटम से अगधक ि्ततिारी औय


कोई राणी नहीॊ है, उसभं सभ्त रनतक ू रताओॊ को ्िानुक ू र फना रेने की ऺभता

है। िे भानते हं कक भनुटम भहान है, उससे फढकय कोई नहीॊ। महाॉ तक कक िे कह

उठते हं "्िगीम ि्तुएॊ धयती से र्भरे रफना भनोहय नहीॊ होती" धयती-िह धयती


जहाॊ भानि का ननिास है। ्वििेदी जी की भानितािादी विचायधाया एक निीन

आरोक, एक नमा आधाय ्तॊब रे कय चरती है। श्ी र्ििनाथ जी र्रखते हं—


"उनका भानििाद उऩननर्दं का भानििाद है, यिीॊरनाथ का भानििाद है, जो भानि

सभाज भं ककसी रकाय का बेद मा िगष भानकय नहीॊ चरता, जो भानि कहने से

सबी िगं के भानि को रहण कयता है। उनकी भानिता भानि सभाज भं जहाॊ बी


उ्ऩी़न देखती है, ढुरक ऩ़ने की ऩऺऩानतनी है तमंकक भानि-भानि के भध्म

सॊचरयत होने िारी एक ही आ्भा ऩय उनका वि्िास है। "्वििेदी जी ने इसी


विचायधाया की नीॊि ऩय अऩनी भानितािादी विचायधाया का बिन ख़ा ककमा है। िे

कहते हं–" भनुटम सभ्त ऊऩयी विबेदं के अॊतयार भं एक औय अखॊड है।

तथाकगथत धभष-भत, याटरीमता औय जानत-त्ि उसकी अखॊडता भं ककसी रकाय की


फाधा नहीॊ ऩहॊचा सकते। "इसीर्रए िे चाहते हं कक सबी भनुटम एक दूसये के दुख-

सुख के रनत सॊिेदनिीर फने ्जससे सभ्त भानिता भं सुख, िाॊनत एिॊ रसवनता




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