Page 20 - kaushal
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वििुधॎध सॊ्क र नत के िर फाद की फात है। सफ क ु छ भं र्भरािि है, सफ क ु छ अवििुधॎध
है। िुधॎध है के िर भनुटम की दुदषभ ्जजीविर्ा (जीने की इ्छा)। िह गॊगा की
अफागधत अनाहत धाया के सभान सफ क ु छ को हजभ कयने के फाद बी ऩविि है
औय मही भनुटम इस अखखर वि्ि के र्मेक ऺेि भं उऩ््थत है। महाॉ तक कक
अध्ममन के ्जतने बी ऺेि हं उनके क ं र भं बी भनुटम औय उसकी अनथक मािा
है औय क ु छ नहीॊ। ्वििेदी जी र्रखते हं– "िा्ति भं हभाये अध्ममन की साभरी
र्मऺ भनुटम है। आऩने इनतहास भं इसी भनुटम की धायािाही जम-मािा ऩढी है,
साहह्म भं इसी के आिेगं, उ्िेगं औय उकरासं का ्ऩॊदन देखा है, याजनीनत भं
इसकी रुका-नछऩी के खेर का दिषन ककमा है, अथषिा्ि भं इसकी यीढ की ि्तत
का अध्ममन ककमा है। मह भनुटम ही िा्तविक र्म है।"
इस भनुटम को फुयाइमं से फचाना, उसे उ्चतय र्म की ओय रेरयत कयना
औय उसभे भनुटमता के गुण जारत कय विकर्सत कयना ही साहह्म का र्म है।
जो साहह्म भनुटम को भनुटम न फना सके िह साहह्म की श्ेणी भं यखे जाने के
मो्म ही नहीॊ है। ्वििेदी जी के अनुसाय "भनुटम को अऻान, भोह, क ु सॊ्काय औय
ऩयभुखाऩेषऺता से फचाना ही साहह्म का िा्तविक र्म है जो िा्जार भनुटम
को दुगषनत, हीनता औय ऩयभुखाऩेषऺता से न फचा सके , जो उसकी आ्भा को
तेजोद्दीप्त न फना सके , जो उसके ृदम को ऩयदुखकातय औय सॊिेदनिीर न फना
सके उसे साहह्म कहने भं भुझे सॊकोच होता है।"
्वििेदी जी की भानि भं अिूि आ्था है। मही कायण है कक जीिन के ककसी
बी अॊग का, ककसी बी ृ्टिकोण के ऩरयरे्म भं वि्रेर्ण ककमा जा यहा हो, िे
सिषि उसे भानि, उसके ्िबाि औय उसके सभाज का अविबा्म अॊग भानकय ही
वि्रेवर्त कयते हं। िे भानते हं कक भनुटम भं जो भनुटमता है, िही आयाध्म है औय
उसके उ्थान के र्रए सतत रम्निीर यहना ही ननताॊत आि्मक है "इनतहास–
विधाता का ्ऩटि इॊगगत इस ओय है कक भनुटम भं जो भनुटमता है, जो उसे ऩिु से
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है। िुधॎध है के िर भनुटम की दुदषभ ्जजीविर्ा (जीने की इ्छा)। िह गॊगा की
अफागधत अनाहत धाया के सभान सफ क ु छ को हजभ कयने के फाद बी ऩविि है
औय मही भनुटम इस अखखर वि्ि के र्मेक ऺेि भं उऩ््थत है। महाॉ तक कक
अध्ममन के ्जतने बी ऺेि हं उनके क ं र भं बी भनुटम औय उसकी अनथक मािा
है औय क ु छ नहीॊ। ्वििेदी जी र्रखते हं– "िा्ति भं हभाये अध्ममन की साभरी
र्मऺ भनुटम है। आऩने इनतहास भं इसी भनुटम की धायािाही जम-मािा ऩढी है,
साहह्म भं इसी के आिेगं, उ्िेगं औय उकरासं का ्ऩॊदन देखा है, याजनीनत भं
इसकी रुका-नछऩी के खेर का दिषन ककमा है, अथषिा्ि भं इसकी यीढ की ि्तत
का अध्ममन ककमा है। मह भनुटम ही िा्तविक र्म है।"
इस भनुटम को फुयाइमं से फचाना, उसे उ्चतय र्म की ओय रेरयत कयना
औय उसभे भनुटमता के गुण जारत कय विकर्सत कयना ही साहह्म का र्म है।
जो साहह्म भनुटम को भनुटम न फना सके िह साहह्म की श्ेणी भं यखे जाने के
मो्म ही नहीॊ है। ्वििेदी जी के अनुसाय "भनुटम को अऻान, भोह, क ु सॊ्काय औय
ऩयभुखाऩेषऺता से फचाना ही साहह्म का िा्तविक र्म है जो िा्जार भनुटम
को दुगषनत, हीनता औय ऩयभुखाऩेषऺता से न फचा सके , जो उसकी आ्भा को
तेजोद्दीप्त न फना सके , जो उसके ृदम को ऩयदुखकातय औय सॊिेदनिीर न फना
सके उसे साहह्म कहने भं भुझे सॊकोच होता है।"
्वििेदी जी की भानि भं अिूि आ्था है। मही कायण है कक जीिन के ककसी
बी अॊग का, ककसी बी ृ्टिकोण के ऩरयरे्म भं वि्रेर्ण ककमा जा यहा हो, िे
सिषि उसे भानि, उसके ्िबाि औय उसके सभाज का अविबा्म अॊग भानकय ही
वि्रेवर्त कयते हं। िे भानते हं कक भनुटम भं जो भनुटमता है, िही आयाध्म है औय
उसके उ्थान के र्रए सतत रम्निीर यहना ही ननताॊत आि्मक है "इनतहास–
विधाता का ्ऩटि इॊगगत इस ओय है कक भनुटम भं जो भनुटमता है, जो उसे ऩिु से
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