Page 21 - kaushal
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अरग कय देती है, िही आयाध्म है। तमा साहह्म औय तमा याजनीनत, सफका
एकभाि र्म इसी भनुटमता की सिांगीण उवननत है।"
्वििेदी जी भनुटम को इस सर्टि का अजेम राणी कहते हं। उसकी अदम्म
्जजीविर्ा से अर्बबूत हो उठते हं औय उसकी साभथमष से बाि-विबोय होकय कह
उठते हं। "भं आ्चमष से भनुटम की अभत ि्तत की फात सोचता हॉ। आरू तमा से
ु
ू
तमा हो गमा? फंगन कॊ िकायी से िाताषक ु फन गमा। आभ बी उसी रकाय फदरा है।न
जाने भनुटम के हाथं विधाता की सर्टि भं अबी तमा–तमा ऩरयितषन होने िारे
हं।आज जो दुर्बषऺ औय अवन–सॊकि का हाहाकाय गच्त को भथ यहा है िह िा्ित
हो कय नहीॊ आमा है। भनुटम उस ऩय विजमी होगा। ननयाि होने की फात नहीॊ है।
भनुटम इस वि्ि का दुजेम राणी है। भनुटम रक र नत को अनुक ू र फना रेने िारा
अभत राणी है।"
ु
्वििेदी जी जफ भनुटम मा भानि की फात कयते हं तो उससे उनका अर्बराम
ककसी एक भनुटम अथिा ्म्टि भानि से नहीॊ होता, फ्कक िे तो हय फाय सभ्टि
भानि की ओय इॊगगत कय यहे होते हं। सभ्टि भानि ्जसकी सोच एकाॊगी नहीॊ
होती, जो हभेिा सबी के ककमाण की गचॊता कयता है औय भानि भाि के ककमाण
के र्रए अऩनी सायी ऊजाष रगा देता है। उनकी इसी विर्िटिता को उ्घाहित कयते
हए यभेि चॊर िाह र्रखते हं "उनके ननफॊध ककसी एक विर्िटि '्म्तत चेतना' के
ु
िाहक नहीॊ हं। िे एक ऐसी सभरधॎध औय सू्भ अॊतृष्टि के भाध्मभ फन कय आए हं
जो भानि को उसकी सभरता भं कई-कई कारं औय कई-कई सॊ्क र नतमं के
ऩरयरे्म भं ननयॊतय विकसनिीर ककवतु गचयॊतन भानि को उ्घाहित कयना चाहती
है। उनका स्म इस मा उस ्म्तत का ननजी, राइिेि स्म नहीॊ है अवऩतु सफका
'भानुर् स्म' हैI ्वििेदी जी के रगबग सबी ननफॊध इस हदतकार ननयऩेऺ भानिीम
'स्म' का ननयाियण कयने की भह्िाकाॊऺा औय अनुसॊगध्सा से रेरयत हं।"
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एकभाि र्म इसी भनुटमता की सिांगीण उवननत है।"
्वििेदी जी भनुटम को इस सर्टि का अजेम राणी कहते हं। उसकी अदम्म
्जजीविर्ा से अर्बबूत हो उठते हं औय उसकी साभथमष से बाि-विबोय होकय कह
उठते हं। "भं आ्चमष से भनुटम की अभत ि्तत की फात सोचता हॉ। आरू तमा से
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तमा हो गमा? फंगन कॊ िकायी से िाताषक ु फन गमा। आभ बी उसी रकाय फदरा है।न
जाने भनुटम के हाथं विधाता की सर्टि भं अबी तमा–तमा ऩरयितषन होने िारे
हं।आज जो दुर्बषऺ औय अवन–सॊकि का हाहाकाय गच्त को भथ यहा है िह िा्ित
हो कय नहीॊ आमा है। भनुटम उस ऩय विजमी होगा। ननयाि होने की फात नहीॊ है।
भनुटम इस वि्ि का दुजेम राणी है। भनुटम रक र नत को अनुक ू र फना रेने िारा
अभत राणी है।"
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्वििेदी जी जफ भनुटम मा भानि की फात कयते हं तो उससे उनका अर्बराम
ककसी एक भनुटम अथिा ्म्टि भानि से नहीॊ होता, फ्कक िे तो हय फाय सभ्टि
भानि की ओय इॊगगत कय यहे होते हं। सभ्टि भानि ्जसकी सोच एकाॊगी नहीॊ
होती, जो हभेिा सबी के ककमाण की गचॊता कयता है औय भानि भाि के ककमाण
के र्रए अऩनी सायी ऊजाष रगा देता है। उनकी इसी विर्िटिता को उ्घाहित कयते
हए यभेि चॊर िाह र्रखते हं "उनके ननफॊध ककसी एक विर्िटि '्म्तत चेतना' के
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िाहक नहीॊ हं। िे एक ऐसी सभरधॎध औय सू्भ अॊतृष्टि के भाध्मभ फन कय आए हं
जो भानि को उसकी सभरता भं कई-कई कारं औय कई-कई सॊ्क र नतमं के
ऩरयरे्म भं ननयॊतय विकसनिीर ककवतु गचयॊतन भानि को उ्घाहित कयना चाहती
है। उनका स्म इस मा उस ्म्तत का ननजी, राइिेि स्म नहीॊ है अवऩतु सफका
'भानुर् स्म' हैI ्वििेदी जी के रगबग सबी ननफॊध इस हदतकार ननयऩेऺ भानिीम
'स्म' का ननयाियण कयने की भह्िाकाॊऺा औय अनुसॊगध्सा से रेरयत हं।"
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