Page 19 - kaushal
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की रहय ्माप्त हो जाए। उनकी ृ्टि भं साभूहहक ककमाण ही भनुटम का
सिो्तभ राप्म है।
इस चयाचय सर्टि भं भानि एक विर्िटि एिॊ अजेम राणी है ्जसके साभथमष
का आकरन कयना असॊबि तो नहीॊ, कहठन अि्म है। सर्टि के आयॊब से रे कय
अबी तक उसके दुदषम्म साहस के एक नहीॊ अनेक उदाहायण र्भरते हं ्जनसे मह
र्सधॎध होता है कक भनुटम की ्जजीविर्ा अभत है, अतुरनीम है। इस धयती ऩय एक
ु
छोिे से अॊक ु य से िभि् भनुटम के ूऩ भं उसकी विकास मािा की अनूठी घिना
का िणषन ्वििेदी जी ने इस रकाय ककमा है– "न जाने ककस अनाहदकार के एक
अऻात भुहतष भं सूमषभॊडर से िूिकय मह ऩरथिी नाभक रह वऩॊड सूमष के चायं ओय
ू
चतकय भायने रगा था। इवहीॊ भं से ककसी एक मा अनेक के बीतय जीित्ि का
अॊक ु य ितषभान था। - अिसय आने ऩय उसने सभ्त ज़ ि्तत के विुधॎध विरोह
कयके र्सय उठामा — अॊक ु य ूऩ भं। सायी ज़ ि्तत अऩने रफर आकर्षण का
सॊऩूणष िेग रगाकय बी उसे नहीॊ खीॊच सकी। सर्टि के इनतहास भं मह एकदभ
अघहित घिना थीI जीित्ि अरसय होता गमा। िह एक ियीय से दूसये भे सॊतनत
के ूऩ भं सॊिर्भत होता हआ फढता ही गमा। अनिुधॎध, अश्ाॊत। भनुटम उसी की
ु
अॊनतभ ऩरयखणनत है – देि भं सीर्भत, कार भं असीभ, ियीय से नाििान, आ्भा से
अविन्िय।"
अऩने जवभ से रेकय अफ तक सॊघर्षिीर, रक र नत के यह्मं के उ्घािन भं यत,
ननत नूतन आविटकायं की बंि से धयती को निाजता, अदभनीम ्जजीविर्ा से
बयऩूय विकासोवभुख भानि ्वििेदी जी के साहह्म का अबीटि है। िे भानते हं कक
भनुटम भनुटम भं विबेद नहीॊ है। सॊसाय के ककसी बी धभष का अनुमामी हो, ककसी
बी जानत का हह्सा हो, ककसी देि का फार्िॊदा/ननिासी हो, िह ऩहरे भनुटम है फाद
भं क ु छ औय भानि की जीिनी–ि्तत ्वििेदी जी को भु्ध कय देती है। िे उसके
सम्भुख नतभ्तक हो कह उठते हं – "भनुटम की जीिनी-ि्तत फ़ी ननभषभ है, िह
सभ्मता औय सॊ्क र नत के िरथा भोहं को यंदती चरी आ यही है। देि औय जानत की
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सिो्तभ राप्म है।
इस चयाचय सर्टि भं भानि एक विर्िटि एिॊ अजेम राणी है ्जसके साभथमष
का आकरन कयना असॊबि तो नहीॊ, कहठन अि्म है। सर्टि के आयॊब से रे कय
अबी तक उसके दुदषम्म साहस के एक नहीॊ अनेक उदाहायण र्भरते हं ्जनसे मह
र्सधॎध होता है कक भनुटम की ्जजीविर्ा अभत है, अतुरनीम है। इस धयती ऩय एक
ु
छोिे से अॊक ु य से िभि् भनुटम के ूऩ भं उसकी विकास मािा की अनूठी घिना
का िणषन ्वििेदी जी ने इस रकाय ककमा है– "न जाने ककस अनाहदकार के एक
अऻात भुहतष भं सूमषभॊडर से िूिकय मह ऩरथिी नाभक रह वऩॊड सूमष के चायं ओय
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चतकय भायने रगा था। इवहीॊ भं से ककसी एक मा अनेक के बीतय जीित्ि का
अॊक ु य ितषभान था। - अिसय आने ऩय उसने सभ्त ज़ ि्तत के विुधॎध विरोह
कयके र्सय उठामा — अॊक ु य ूऩ भं। सायी ज़ ि्तत अऩने रफर आकर्षण का
सॊऩूणष िेग रगाकय बी उसे नहीॊ खीॊच सकी। सर्टि के इनतहास भं मह एकदभ
अघहित घिना थीI जीित्ि अरसय होता गमा। िह एक ियीय से दूसये भे सॊतनत
के ूऩ भं सॊिर्भत होता हआ फढता ही गमा। अनिुधॎध, अश्ाॊत। भनुटम उसी की
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अॊनतभ ऩरयखणनत है – देि भं सीर्भत, कार भं असीभ, ियीय से नाििान, आ्भा से
अविन्िय।"
अऩने जवभ से रेकय अफ तक सॊघर्षिीर, रक र नत के यह्मं के उ्घािन भं यत,
ननत नूतन आविटकायं की बंि से धयती को निाजता, अदभनीम ्जजीविर्ा से
बयऩूय विकासोवभुख भानि ्वििेदी जी के साहह्म का अबीटि है। िे भानते हं कक
भनुटम भनुटम भं विबेद नहीॊ है। सॊसाय के ककसी बी धभष का अनुमामी हो, ककसी
बी जानत का हह्सा हो, ककसी देि का फार्िॊदा/ननिासी हो, िह ऩहरे भनुटम है फाद
भं क ु छ औय भानि की जीिनी–ि्तत ्वििेदी जी को भु्ध कय देती है। िे उसके
सम्भुख नतभ्तक हो कह उठते हं – "भनुटम की जीिनी-ि्तत फ़ी ननभषभ है, िह
सभ्मता औय सॊ्क र नत के िरथा भोहं को यंदती चरी आ यही है। देि औय जानत की
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