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्वििेदी जी ने अऩने ननफॊधं भं भानि के ्िाबाविक विकास की गाथा र्रखी

है। ऩिु साभावम धयातर से भनुटम ूऩ भं विकर्सत होने की रकिमा के अभूकम


द्तािेज हं उनके ननफॊध। िे भानते हं कक नाखूनं का फढना भनुटम भं वि्मभान

ऩािविक रिर््त का जीिॊत उदाहयण है औय फढने ऩय ननयऩेऺ बाि से उवहं काि

देना उसके बीतय भौजूद भनुटमता का रभाण। ितषभान सभम भं ्जस रकाय वि्ि


के रगबग सबी देिं भं हगथमाय इकठा कयने की हो़ सी रगी है, िह भानो फढते

हए नाखूनं की बाॊनत भनुटम भं िेर् यह गई ऩिुता की ही ननिानी है औय इनकी


फाढ ऩय ननमॊिण रगाने की भाॊग उसके अॊदय की भानिता की ऩुकाय है, जो ऩिुता

को हया कय भनुटमता की विजम का उ्घोर् कयना चाहती है। इसी कायण िे कहते

हं "भनुटम भायणा्िो के सॊचमन से, फा्म उऩकयणं के फाहकम से उस ि्तु को ऩा


बी सकता है, ्जसे उसने फ़े आडम्फय के साथ सपरता का नाभ दे यखा है। ऩयॊतु

भनुटम की चरयताथषता रेभ भं है, भैिी भं है, ्माग भं है, अऩने को सफके भॊगर के


र्रए नन्िेर् बाि से दे देने भं है। नाखूनं का फढना भनुटम की उस अॊध सहजात

िर््त का ऩरयणाभ है, जो उसके जीिन भं सपरता रे आना चाहती है, उसको काि

देना उस ्िननधाषरयत, आ्भफॊधन का पर है, जो उसे चरयताथषता की ओय रे जाती


है। "नाऽून फढने की साभावम रिर््त को भानिता के वियाि िै््िक धयातर ऩय

रनतटठावऩत कय ऩाना ्वििेदीजी जैसे भानितािादी के र्रए ही सॊबि था।

भनुटमता को आहत कयने के जो बी उऩकयण हभाये सभाज भं रचर्रत हं िे सबी


्वििेदी जी के बािुक गच्त ऩय बी आघात कयते हं। ितषभान बौनतक मुग भे सबी

भं तथाकगथत ऐ्िमष राप्त कयने तथा उसे मेन के न रकायेण राप्त कयने की इ्छा


फरिती हो गई है। बौनतकता की अॊधी दौ़ ऩिुता को ही फढािा देती है "भनुटम भं

महद वििेक नहीॊ जारत हो सका, महद उदायता, सभता औय सॊिेदनिीरता का

विकास नहीॊ हआ, महद िह आ्भसम्भान औय ऩय सम्भान के भहान त्िं को


नहीॊ अऩना सका, महद उसभे सॊतोर् एिॊ श्धॎधा का विकास नहीॊ हआ तो िह ऩिु से

अगधक र्बवन नहीॊ है। रोब–भोह को फढािा देने से भनुटमता ही आहत होती है।



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