Page 83 - kaushal
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बाषा की ऩुकाय



उठो बायती अफ तो जागो, नैनतकता तुम्हं ऩुकायती।

,
ऩयबार्ा का दाभन छोडो अऩनाओ बार्ा बायती।।
जो मुगं-मुगं से चरती आमी, भानिता की जो ऩरयचामक है।


अऩनी िाणी की िोबा है, जो रेभ-दमा की िाहक है।।
जो सॊ्क र नत की जननी है, औय सभ्मता की ऩारक है।

अवतभषन भं झाॊक के देखो अऩनी “जननी बार्ा’’ ककस रामक है।।

उठो बायती अफ तो जागो, नैनतकता तुम्हं ऩुकायती।

,
ऩयबार्ा का दाभन छोडो अऩनाओ बार्ा बायती।।
न जाने तमं हभ सबी को, ऩयबार्ा इतनी बाती है।

अऩनं के फीच भं, अऩनी बार्ा, अऩने को ही असहाम सा ऩाती है।।

आओ ृढ-सॊककऩ कयं हभ साये र्भथक मे र्भिाना है।

हय बायतीम के “भन भ्वदय’’ भं “हहवदी’’ का निदीऩ जराना है।।

उठो बायती अफ तो जागो, नैनतकता तुम्हं ऩुकायती।

,
ऩयबार्ा का दाभन छोडो अऩनाओ बार्ा बायती।।
है विनर ननिेदन उन अिनो से ्जनकी सोच क ु छ छोिी है।

ननज गौयि की िुूआत हे फॊधु! ननज बार्ा से ही होती है।।

आओ गौयि गान कयं उस बार्ा का जो “’कार्रॊदी’’ है।

गिष से फोरं हभ सफ र्भरकय जो अऩनी भातरबार्ा “हहवदी’’ है।।

उठो बायती अफ तो जागो, नैनतकता तुम्हं ऩुकायती।
,
ऩयबार्ा का दाभन छोडो अऩनाओ बार्ा बायती।।

रेमाॊश शॊकय नवऩत,

वरय्ठ सहामक तदथि


इसयो, फंगरूय









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