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अननमॊरित धन र्रप्सा भनुटम को ऩिु से बी अगधक ननक र टि फना देती है। ्वििेदी

जी की हाहदषक अर्बरार्ा है कक भनुटम के अॊदय की ऩिुता का सभूर नाि हो


इसीर्रए िे अऩने साथी साहह्मकायं को उ्फोगधत कयते हए फाय फाय उनसे ऐसे

साहह्म सरजन का अनुयोध कयते हं जो भनुटम को ऩिुता के साभावम धयातर से

उठाकय भानिता की ऩीहठका ऩय रनतटठावऩत कय दे – "इस सभम हभं ऐसे साहह्म


की आि्मकता है जो हभाये ह्रदम को सॊिेदनिीर औय उदाय फनामे। ऩयॊतु मह

काभ हभं ककसी विर्िटि ्िगष की रा्प्त के र्रए मा रबूत ऩु्म के उऩाजषन के


र्रए नहीॊ कयना है। मह भनुटमता की यऺा के र्रए ऩयभ आि्मक हो गमा है।

"भनुटमता की यऺा के सदुद्दे्म के साभने ्िगष बी उवहं काम्म नहीॊ। उनके

अनुसाय "भनुटम की सेिा भं ही ऩयभा्भा की सेिा" है।


सॊसाय के र्मेक ऺेि चाहे िह साहह्म हो चाहे करा, चाहे िह याजनीनत हो

मा अथषनीनत का र्म के िर भनुटम ही है। इस फात को िेद-भॊि की बाॊनत अधीत


कय रेने िारे ्वििेदी जी की ककऩना के भनुटम भं क ु छ ऐसे गुण अऩेषऺत हं जो

उसे विर्िटि फनाने की ऺभता यखते हं जैसे कफीय का पतक़ऩन, भ्ती, गाॊधी की

अॊत्ि्तत औय ऩयदुखकातयता, यिीॊरनाथ िैगोय की भानिता भं अिर श्धॎधा एिॊ


ऩयभुखाऩेषऺता से विय्तत, कार्रदास औय ऩॊत का सौवदमषफोध औय अनास्तत, मे

विविधिणी गुण जफ एक साथ हंगं तबी एक सॊऩूणष भानि का गचि आकाय रेगा।

्वििेदी जी की भावमता है कक जो अिोक की बाॊनत उऩेऺा से फेऩयिाह हो कय


अऩने भं भ्त यहना जानता है, ्जसभं र्ियीर् की बाॊनत तप्त िाताियण भं

िामुभॊडर से अऩना राप्म रहण कय सयस फने यहने की ऺभता है, जो क ु िज के


सभान कठोय ऩार्ाण की छाती चीय कय अऩना बो्म सॊरह कय सकने का साहस

यखता है, जो सिष के र्रए आ्भ को दर्रत राऺा की बाॊनत ननचो़कय फर्रदान कय

देने भं सभथष है; िही भनुटमता के आसन ऩय फैठने का स्चा अगधकायी है।


्वििेदी जी भनुटम को ्िार्बभानी होने का उऩदेि देते हं। उनके भनोजगत का

भानि "दूसये के ्िाय ऩय बीख भाॊगने नहीॊ जाता, कोई ननकि आ गमा तो बम के



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