Page 25 - kaushal
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भाये अधभया नहीॊ हो जाता, नीनत औय धभष का उऩदेि नहीॊ देता कपयता, अऩनी
उवननत के र्रए अपसयं का जूता नहीॊ चािता कपयता, दाॊत नहीॊ ननऩोयता, फगरं
नहीॊ झाॊकता। जीता है औय िान से जीता है। "ऩयॊतु िे मे बी नहीॊ चाहते कक िह
अहॊकायी फन जाए। इस अहॊकाय से फचने का उऩाम बी िे फताते हं कक भनुटम
्िमॊ को उस इनतहास विधाता की मोजना का अॊग भाने ्जसके तजषनी सॊके तं से
इस अखखर वि्ि के चयाचय का ननमभन हो यहा है तथा अऩने कामं के ऩरयणाभं
को उसी की मोजना का एक हह्सा भान कय नन्ऩरह बाि से रहण कये तो िह
अर्बभानी होने से फच सकता है। ्वििेदी जी कहते हं- "भनुटम जी यहा है, के िर
जी यहा है; अऩनी इ्छा से नहीॊ, इनतहास –विधाता की मोजना के अनुसाय, ककसी
को उससे सुख र्भर जाए, फहत अ्छी फात है, नहीॊ र्भर सका, कोई फात नहीॊ; ऩयॊतु
ु
उसे अर्बभान नहीॊ होना चाहहए। सुख ऩहॉचाने का अर्बभान महद गरत है तो दु्ख
ु
ऩहॉचाने का अर्बभान तो ननयॊतय गरत है।"
ु
भनुटम ऺभा, दमा, ऩयोऩकाय, विनम, ्माग इ्माहद गुणं का आश्म-्थर है।
्वििेदी जी की मह ृढ भावमता है कक स्चा साहह्मकाय िही है जो साहह्म भं
इन गुणं को रनत्टठत कयता है। इन गुणं के अरािा दो औय ऐसे गुण हं जो
भनुटम भं होना िे आि्मक भानते हं –"सॊमभ औय ननटठा ऩुयानी ूहढमाॉ नहीॊ हं।
िे भनुटम के दीघष आमास से उऩरब्ध गुण हं औय दीघष आमास से ही ऩाए जाते
हं।" आज जफ हभ सभाज भं चायं ओय पै री अयाजकता देखते हं औय नन्मरनत
दुटकभष औय दुयाचाय के सभाचायं से दो चाय होते हं तो ्वििेदी जी की फात ित–
रनतित सही रतीत होती है। ितषभान सभम भं साहह्मकाय भनोविऻान औय
भनोवि्रेर्ण िा्ि से फेहद रबावित हदखाई ऩ़ते हं। आज के अगधकाॊि साहह्म
सरजन का उद्दे्म मह फताना भाि रतीत होता है कक भानि भन की रसुप्त
िासनाएॊ, अिदर्भत काभनाएॊ ककस रकाय चेतन भ््तटक भं ूऩ ऩरयरह कय यही
हं। महाॉ र्न मह उठता है कक तमा इस रकाय का गचॊतन बम, अवि्िास औय
सॊिम को जवभ नहीॊ देगा? ्वििेदी जी इन सबी विऻान, िा्िो को अध्ममन-मो्म
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उवननत के र्रए अपसयं का जूता नहीॊ चािता कपयता, दाॊत नहीॊ ननऩोयता, फगरं
नहीॊ झाॊकता। जीता है औय िान से जीता है। "ऩयॊतु िे मे बी नहीॊ चाहते कक िह
अहॊकायी फन जाए। इस अहॊकाय से फचने का उऩाम बी िे फताते हं कक भनुटम
्िमॊ को उस इनतहास विधाता की मोजना का अॊग भाने ्जसके तजषनी सॊके तं से
इस अखखर वि्ि के चयाचय का ननमभन हो यहा है तथा अऩने कामं के ऩरयणाभं
को उसी की मोजना का एक हह्सा भान कय नन्ऩरह बाि से रहण कये तो िह
अर्बभानी होने से फच सकता है। ्वििेदी जी कहते हं- "भनुटम जी यहा है, के िर
जी यहा है; अऩनी इ्छा से नहीॊ, इनतहास –विधाता की मोजना के अनुसाय, ककसी
को उससे सुख र्भर जाए, फहत अ्छी फात है, नहीॊ र्भर सका, कोई फात नहीॊ; ऩयॊतु
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उसे अर्बभान नहीॊ होना चाहहए। सुख ऩहॉचाने का अर्बभान महद गरत है तो दु्ख
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ऩहॉचाने का अर्बभान तो ननयॊतय गरत है।"
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भनुटम ऺभा, दमा, ऩयोऩकाय, विनम, ्माग इ्माहद गुणं का आश्म-्थर है।
्वििेदी जी की मह ृढ भावमता है कक स्चा साहह्मकाय िही है जो साहह्म भं
इन गुणं को रनत्टठत कयता है। इन गुणं के अरािा दो औय ऐसे गुण हं जो
भनुटम भं होना िे आि्मक भानते हं –"सॊमभ औय ननटठा ऩुयानी ूहढमाॉ नहीॊ हं।
िे भनुटम के दीघष आमास से उऩरब्ध गुण हं औय दीघष आमास से ही ऩाए जाते
हं।" आज जफ हभ सभाज भं चायं ओय पै री अयाजकता देखते हं औय नन्मरनत
दुटकभष औय दुयाचाय के सभाचायं से दो चाय होते हं तो ्वििेदी जी की फात ित–
रनतित सही रतीत होती है। ितषभान सभम भं साहह्मकाय भनोविऻान औय
भनोवि्रेर्ण िा्ि से फेहद रबावित हदखाई ऩ़ते हं। आज के अगधकाॊि साहह्म
सरजन का उद्दे्म मह फताना भाि रतीत होता है कक भानि भन की रसुप्त
िासनाएॊ, अिदर्भत काभनाएॊ ककस रकाय चेतन भ््तटक भं ूऩ ऩरयरह कय यही
हं। महाॉ र्न मह उठता है कक तमा इस रकाय का गचॊतन बम, अवि्िास औय
सॊिम को जवभ नहीॊ देगा? ्वििेदी जी इन सबी विऻान, िा्िो को अध्ममन-मो्म
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