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आमुिेद भं अ् मागधक भह् ि है। ऐसी भाव मता है कक तुरसी के ऩौधे के आस-ऩास

100 भीिय तक िामु िुधॎध यहती है। ईसाई धभष भं बी इसे अ् मगधक भह् ि राप् त


है।


इसके फाद भनामा जाने िारा रभुख ् मोहाय होरी है ्जसे यॊगं का ् मोहाय


कहा जाता है। इसभं हय रकाय का भनोभार्रव म बूर कय रोग एक-दूसये ऩय यॊग

डारते हं, अफीय-गुरार रगाते हं औय गरे र्भरते हं।



अफ हभ इन ् मोहायं के िैऻाननक औय साभा्जक ऩऺं की ओय ृ्ट िऩात

कयते है जो हभायी सॊ् क र नत की धाया को अवि्् छव न फनाने भं सहामक हए हं।

म्मवऩ हहव दू कै रंडय सूमष औय चाॊद दोनं की गनत ऩय आधारयत है ऩयॊतु ् मोहायं


के सभम का सभामोजन इस रकाय ककमा गमा है कक उस सभम उव हं भनाने की

आदिष ्् थनत होती है। इस सभम न तो अगधक सदी होती है न ही अगधक गभी


्जससे ् म्त त का ियीय आगाभी भौसभ के र्रए तैमाय हो जाता है। आदिष भौसभ

होने के कायण रोग घयं की सपाई एिॊ जीणोधॎधाय कयते हं ्जससे उनका िास

् थान यहने मो् म फना यहता है। ् मोहायं के आमोजन भं ककसी न ककसी ूऩ भं


सभाज के सबी िगं की सहबागगता होती है। महाॊ तक कक फॊगार भं दुगाषजी की

भूनतषमं के ननभाषण के र्रए थो़ी सी र्भिी ‘येड राइि एरयमा’ से बी भॊगाई जाती


है। इस रकाय इन ् मोहायं भं रमुत त होने िारी ि् तुओॊ की रफिी से सभाज के

हय िगष के ऩास धनागभ होता है। अगधकतय ् मोहाय पसरं के किने के फाद खुिी

के भाहौर भं भनाए जाते है। इसर्रए रोगं के ऩास िम िा्त त बी होती है।


दीिारी जैसे ् मोहाय भनाने भं दीऩक जराने के र्रए इ् तेभार ककए जाने िारे

सयसं के तेर से कीिाणुओॊ का नाि होता है। होरी जैसे ् मोहाय भं यॊगं से सयाफोय

होकय रोग एक दूसये के रनत गगरे-र्िकिे, िैय-बाि औय भनोभार्रव म दूय कय रेते


हं।







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