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के भाध् मभ से उव हंने ऐसे आदिष, ् थावऩत ककए जो सभाज को अनुिासनफधॎध

फनाने औय भानि भूक मं को ् थावऩत कयने भं फहत उऩमोगी र्सधॎध हए। इसी को


ध् मान भं यखते हए फेनी कवि ने कहा है


िेद भत सोगध सोगध, सोगध के ऩुयान सफै,


सॊत औ असॊतन को बेद का फताितो।

कऩिी क ु याही क ू ि कर्र के क ु चारी जीि,

कौन याभनाभह की चचाष चराितो।


फेनी कवि कहै भानो भानो हो रतीनत मह,

ऩाहन हहए भं कौन रेभ उऩजाितो।


बायी बिसागय उतायतो किन ऩाय,

जो ऩै याभामन मह तुरसी न गाितो।


हभाया तीसया ् मोहाय दीिारी है ्जसे कानतषक भास की आभािा् मा को

भनामा जाता है। ऐसी भाव मता है कक चौदह िर्ं के िनिास के फाद श्ी याभचॊर


जी इसी हदन अमोध् मा िाऩस आए थे। उनके आगभन की खुिी भं अमोध् मािार्समं

ने दीऩो् सि के भाध् मभ से आनॊदो् सि भनामा था। उसी सभम से दीऩािरी भनाने

की रथा चरी आ यही है। कानतषक के ऩूये भहीने भं धनतेयस, मभ ्वितीमा, छठ,


अऺम निभी औय कानतषक ऩूखणषभा जैसे अनेक ् मोहाय भनाए जाते हं। इस ऩूये भाह

भं सूमोदम से ऩूिष ककसी नदी, ताराफ मा घय ऩय ही ् नान ककमा जाता है ्जसे

कानतषक ् नान कहते हं। इससे ियीय आगे आने िारी ऋतु के रबाि को सहन


कयने मो् म फन जाता है। िर्ष भं दो फाय भनाए जाने िारे नियािं के ्िाया बी

सॊमभ औय ननमभ से यहकय ियीय को आने िारी ऋतु के अनुक ू र फनामा जाता है।


इस भाह भं तुरसी ऩूजन का अ् मगधक भह् ि है। इसे ऩौयाखणक कथा िरॊदा, उसके

ऩनत जारॊधय औय विट णु से जो़कय देखा जाता है िरॊदा को विट णुवरमा बी कहा

जाता है। मह एक िैऻाननक तथ म है कक तुरसी एक और्धीम ऩौधा है ्जसका




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