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बाि की रभुखता हो जाती है, भनुट म िैसा फन जाता है। गो् िाभी तुरसी दास ने

कहा है-



सुभनत क ु भनत सफके उय यहहीॊ,

िेद ऩुयान ननगभ अस कहहीॊ,


जहाॊ सुभनत तॊह सॊऩ््त काना,

जहाॊ क ु भनत तॊह विऩ््त ननधान,



महद अ् छे बाि रभुख होते हं तो हय ृ्ट ि से कक माण होता है। ऩयॊतु फुये

बािं के रभुख हो जाने ऩय अ् मि् था, अयाजकता औय उ् छ र ॊखरता पै र जाती है।


‘भहाराण’ ननयारा ने बी कहा है-


‘‘यह गमा याभ यािण का अऩयाजेम सभय’’



ननयारा जी ने अ् छाई औय फुयाई भं ननयॊतय चर यहे इसी सॊघर्ष की ओय

सॊके त ककमा है। भहाराण ननयारा की रॊफी कविता ‘याभ की ि्त त ऩूजा’, जो फॊगरा


के क र नतिास याभामण ऩय आधारयत है, भं ि्त त आयॊब भं यािण के साथ हदखाई

देती हं। ऩयॊतु उऩासना के ्िाया उव हं रसव न कय याभ यािण ऩय विजम राप् त

कयते हं। ता् ऩमष मह है कक अॊतत: विजम स् म की ही होती है। फाफा नागाजुषन ने


कहा है-


‘‘अफकी फाय दिहये भं कपय यािण भाया जाएगा’’



दिहया के भाध् मभ से स् म की अस् म ऩय विजम का ् भयण कय िैसा ही

कयने का बाि अऺु् ण यखा जाता है। कहा जाता है कक गो् िाभी तुरसी दास ने


याभरीरा के भॊचन की िुूआत की थी। याभचरयत भानस की यचना कय औय

याभरीरा की िुूआत कय गो् िाभी तुरसीदास के एक ऐसे िाताियण का सरजन


ककमा ्जससे हताि औय ननयाि हहव दूओॊ भं नई ् प ू नतष आ गई। याभचरयत भानस




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