Page 43 - kaushal
P. 43
चू्हे चौके से अ्तरयऺ तक भदहरा-मारा
गोधूर्र फेरा है, सूमष की ककयणं खख़ककमं के भाध्मभ से फस भं रिेि कय
यही है। डीिीसी की फस हदकरी की स़क ऩय सयऩि दौ़ी चरी जा यही हं। रोग
अऩने गॊत्म की ओय ऩधाय यहे हं। सबी को घय ऩहॊचने की जकदी है। तबी तो
ु
फस अऩनी ऺभता से तीन गुना मारिमं को ढोए जा यहीॊ हं। मािी का ठेरभठेर
फस भं सिाय हए जा यहे हं। जैसे-जैसे फस आगे फढती है, मािी कभ होने रगे हं।
ु
जैसे अगरा ्िाऩ आता, जी धकधक कयने रगता। ्िाबाविक ही था घय ऩहॊचने
ु
की जकदी जो थी। फस भं उतने ही मािी फचे हं, ्जतनी की फस भं फैठने की सीिं
हं। अफ अॊधेया बी अऩना घय जभाना चाहता है। ऑकपस औय हदकरी की मािा
हभेिा ही थकाउ होती है, आज भुझे थकान क ु छ ्मादा ही रग यही है। तबी भन
ने कहा तमं नहीॊ ऩीछे िारी सीि ऩय चरा जाता, जाकय क ु छ आयाभ ही कय रं।
मह विचाय भुझे उ्तभ रगा तमंकक भेया ्िॉऩ आने भं अबी बी आधे घॊिे से
्मादा रगने िारा है। जैसे ही फस की वऩछरी सीि की तयप फढा भुझे ककताफ सी
रतीत हई, मह कॉऩी थी मा डामयी मह कऺा 4-5 भं ऩढने िारे ककसी 11-12 िर्ष
ु
के फ्चे की र्रखाििमुतत डामयी है।
ऩहरा ऩवना ऩढते से ही भुझे फचऩन माद आ गमा। बया-ऩूया ऩरयिाय, घय भं
दादा-दादी एक फुआ ि चाचा, भाता-वऩता के साथ, भं। दादा जी फचऩन से ही भेये
रनत ्मादा ही रगाि यखते हं। जफ बी कबी फाजाय मा दुकान जाते हं, भेये र्रए
क ु छ न क ु छ अि्म राते हं। कबी चॉकरेि तो कबी आइसिीभ। मह देखकय भाॊ
हभेिा ही खीझ उठती थी। रफगाडं इसे, मह आऩके रा़ प्माय भं क ु छ ्मादा ही
रफगडा जा यहा है। ऩय दादी भाॊ हभेिा ही भु्कया कय कहतीॊ की अये फह मे सफ
ू
इस उर भं नहीॊ कयेगा तो तमा हभायी उर भं कयेगा। औय िो उदास हो जाती।
जफ से डॉतिय ने फतामा है कक उवहं एिॊ दादा जी को भधुभेह हआ है औय िे उ्च
ु
यततचाऩ के बी र्िकाय हं, उनका रगबग सबी रकाय के बोजन से नाता ही तो़
हदमा गमा है। अफ उनके खाने भं उफरी हई चीजं एिॊ घास-प ू स ही तो यह गमा है।
ु
ऐसे भं दादी भाॊ गाहे-फगाहे उऩयिारे से दय्िा्त कयती यहती हं कक उवहं फेिजह
अऩने ऩास तमं नहीॊ फुरा रेता, औय भं मह सोचने रगता कक तमा दादी भॉ की
राथषना ऊऩयिारे तक ऩहॊचती होगी। जफकक उनकी ्मादातय परयमाद तो उनके
ु
26
गोधूर्र फेरा है, सूमष की ककयणं खख़ककमं के भाध्मभ से फस भं रिेि कय
यही है। डीिीसी की फस हदकरी की स़क ऩय सयऩि दौ़ी चरी जा यही हं। रोग
अऩने गॊत्म की ओय ऩधाय यहे हं। सबी को घय ऩहॊचने की जकदी है। तबी तो
ु
फस अऩनी ऺभता से तीन गुना मारिमं को ढोए जा यहीॊ हं। मािी का ठेरभठेर
फस भं सिाय हए जा यहे हं। जैसे-जैसे फस आगे फढती है, मािी कभ होने रगे हं।
ु
जैसे अगरा ्िाऩ आता, जी धकधक कयने रगता। ्िाबाविक ही था घय ऩहॊचने
ु
की जकदी जो थी। फस भं उतने ही मािी फचे हं, ्जतनी की फस भं फैठने की सीिं
हं। अफ अॊधेया बी अऩना घय जभाना चाहता है। ऑकपस औय हदकरी की मािा
हभेिा ही थकाउ होती है, आज भुझे थकान क ु छ ्मादा ही रग यही है। तबी भन
ने कहा तमं नहीॊ ऩीछे िारी सीि ऩय चरा जाता, जाकय क ु छ आयाभ ही कय रं।
मह विचाय भुझे उ्तभ रगा तमंकक भेया ्िॉऩ आने भं अबी बी आधे घॊिे से
्मादा रगने िारा है। जैसे ही फस की वऩछरी सीि की तयप फढा भुझे ककताफ सी
रतीत हई, मह कॉऩी थी मा डामयी मह कऺा 4-5 भं ऩढने िारे ककसी 11-12 िर्ष
ु
के फ्चे की र्रखाििमुतत डामयी है।
ऩहरा ऩवना ऩढते से ही भुझे फचऩन माद आ गमा। बया-ऩूया ऩरयिाय, घय भं
दादा-दादी एक फुआ ि चाचा, भाता-वऩता के साथ, भं। दादा जी फचऩन से ही भेये
रनत ्मादा ही रगाि यखते हं। जफ बी कबी फाजाय मा दुकान जाते हं, भेये र्रए
क ु छ न क ु छ अि्म राते हं। कबी चॉकरेि तो कबी आइसिीभ। मह देखकय भाॊ
हभेिा ही खीझ उठती थी। रफगाडं इसे, मह आऩके रा़ प्माय भं क ु छ ्मादा ही
रफगडा जा यहा है। ऩय दादी भाॊ हभेिा ही भु्कया कय कहतीॊ की अये फह मे सफ
ू
इस उर भं नहीॊ कयेगा तो तमा हभायी उर भं कयेगा। औय िो उदास हो जाती।
जफ से डॉतिय ने फतामा है कक उवहं एिॊ दादा जी को भधुभेह हआ है औय िे उ्च
ु
यततचाऩ के बी र्िकाय हं, उनका रगबग सबी रकाय के बोजन से नाता ही तो़
हदमा गमा है। अफ उनके खाने भं उफरी हई चीजं एिॊ घास-प ू स ही तो यह गमा है।
ु
ऐसे भं दादी भाॊ गाहे-फगाहे उऩयिारे से दय्िा्त कयती यहती हं कक उवहं फेिजह
अऩने ऩास तमं नहीॊ फुरा रेता, औय भं मह सोचने रगता कक तमा दादी भॉ की
राथषना ऊऩयिारे तक ऩहॊचती होगी। जफकक उनकी ्मादातय परयमाद तो उनके
ु
26