Page 44 - kaushal
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फह-फेिे तक ही नहीॊ ऩहॊच ऩाती हं। वऩता श्ी अऩनी ्जॊदगी भं फहत ्म्त हं।
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सुफह 7 फजे उठकय सीधे गुसरखाने ऩहॊचते हं जहाॊ से उनकी पयभाइिं िुू हो
ु
जाती हं - ूऩा अथाषत भेयी भाॊ को ऩुकायते हं, जया भेयी तौर्रमा तो देना, भेया रस
कहाॊ हं, जूते ऩोर्रि कय देना, हाॊ आज एक भीहिॊग है कऩडं भं ्िी जया ढॊग से
कयना। िह फेचायी कबी इधय तो कबी उधय दौ़ती यहती। जफ से इस घय भं आमीॊ
हं कबी चैन से नहीॊ फैठी हंगी।
सुफह सफसे ऩहरे उठना औय यात भं सफसे फाद भं सोना तो उनकी आदत
भं सुभाय हो गमा था। सुफह उठते ही सफसे ऩहरे भेये र्रए ना्ता तैमाय कयना
औय उससे बी फडी चुनौती ना्ता कयाना होता है। आज गोरू ने ऩयाॊठे नहीॊ खामे,
ऩूया दूध ख्भ कयेगा। भेया अ्छा फेिा कबी भाॊ की फात नहीॊ िारता। कबी फहरा
कय कबी प ु सराकय तो कबी गु्सा कय ना्ता कयातीॊ। ऩाऩा का हिकपन तैमाय
कयना, दादा-दादी का ना्ता औय उनको दिाएॊ खखराना, मे सफ भाॊ के सुफह के कामष
होते हं।
त्ऩ्चात घय की सपाई, झा़ ऩंछा, कऩ़ो की सपाई इ्माहद से प ु यसत
ू
र्भरे तो दादा-दादी की परयमाद सुनाई दे, बरा ऐसे भं दादी भाॊ की परयमाद
ऊऩयिारे तक कै से ऩहॊचती होगी। उसके ऩास जो औय बी फहत से काभ होते हंगे।
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इतना ही नहीॊ भाॊ की ्जम्भेदायी भं भेया गरह कामष कयाना बी िार्भर था जो कक
्क ू र रद्त होता है।
्क ू र! हाॊ ्क ू र, तमा खूफसूयत इभायत है। ककतना भनोयभ ऩरटठबूर्भ है।
इसभं ्क ू र भैदान तो चाय चाॊद रगा यहा है। फ्चे आते ही रारानमत हो उठते हं।
तरास ूभ की फात ही अरग है ककसी ऩॊच र्सताया होिर के कभये से कभ
सुस््जत नहीॊ हं। अध्माऩक तो रगते ही नहीॊ कक इस देि के नागरयक हं। ऐसा
रगता है सीधे मा तो अभेरयका से आए हं मा रफरामत से। कोि-ऩंि के साथ िाई
ऐसे ऩहनते हं कक गरती से बी गरे से हिा रिेि न कय ऩाए। बाई तमा पयाषिेदाय
अॊरेजी फोरते हं। इनके साभने आते ही अर्बबािक की तो फोरती फॊद हो जाती ऩय
यही फात ऩढाने की, मह न ऩूछो तो अ्छा है। आजकर तो ्क ू र रिेि देते सभम
ही तम कय रेते हं कक कॉऩी-ककताफं, ऩेन, ्क ू र फैग, ऩंि, ििष, जूते, भोजे, िाई
इ्माहद सबी चीजं ्क ू र से ही रेनी होगी। औय हाॊ आऩका फ्चा ऩढाई भं फहत
ु
कभजोय है तो घय ऩय ्मूिन रगाना होगा। चूॊकक हभ भध्मभ ऩरयिाय से ताकरुक
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सुफह 7 फजे उठकय सीधे गुसरखाने ऩहॊचते हं जहाॊ से उनकी पयभाइिं िुू हो
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जाती हं - ूऩा अथाषत भेयी भाॊ को ऩुकायते हं, जया भेयी तौर्रमा तो देना, भेया रस
कहाॊ हं, जूते ऩोर्रि कय देना, हाॊ आज एक भीहिॊग है कऩडं भं ्िी जया ढॊग से
कयना। िह फेचायी कबी इधय तो कबी उधय दौ़ती यहती। जफ से इस घय भं आमीॊ
हं कबी चैन से नहीॊ फैठी हंगी।
सुफह सफसे ऩहरे उठना औय यात भं सफसे फाद भं सोना तो उनकी आदत
भं सुभाय हो गमा था। सुफह उठते ही सफसे ऩहरे भेये र्रए ना्ता तैमाय कयना
औय उससे बी फडी चुनौती ना्ता कयाना होता है। आज गोरू ने ऩयाॊठे नहीॊ खामे,
ऩूया दूध ख्भ कयेगा। भेया अ्छा फेिा कबी भाॊ की फात नहीॊ िारता। कबी फहरा
कय कबी प ु सराकय तो कबी गु्सा कय ना्ता कयातीॊ। ऩाऩा का हिकपन तैमाय
कयना, दादा-दादी का ना्ता औय उनको दिाएॊ खखराना, मे सफ भाॊ के सुफह के कामष
होते हं।
त्ऩ्चात घय की सपाई, झा़ ऩंछा, कऩ़ो की सपाई इ्माहद से प ु यसत
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र्भरे तो दादा-दादी की परयमाद सुनाई दे, बरा ऐसे भं दादी भाॊ की परयमाद
ऊऩयिारे तक कै से ऩहॊचती होगी। उसके ऩास जो औय बी फहत से काभ होते हंगे।
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इतना ही नहीॊ भाॊ की ्जम्भेदायी भं भेया गरह कामष कयाना बी िार्भर था जो कक
्क ू र रद्त होता है।
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इसभं ्क ू र भैदान तो चाय चाॊद रगा यहा है। फ्चे आते ही रारानमत हो उठते हं।
तरास ूभ की फात ही अरग है ककसी ऩॊच र्सताया होिर के कभये से कभ
सुस््जत नहीॊ हं। अध्माऩक तो रगते ही नहीॊ कक इस देि के नागरयक हं। ऐसा
रगता है सीधे मा तो अभेरयका से आए हं मा रफरामत से। कोि-ऩंि के साथ िाई
ऐसे ऩहनते हं कक गरती से बी गरे से हिा रिेि न कय ऩाए। बाई तमा पयाषिेदाय
अॊरेजी फोरते हं। इनके साभने आते ही अर्बबािक की तो फोरती फॊद हो जाती ऩय
यही फात ऩढाने की, मह न ऩूछो तो अ्छा है। आजकर तो ्क ू र रिेि देते सभम
ही तम कय रेते हं कक कॉऩी-ककताफं, ऩेन, ्क ू र फैग, ऩंि, ििष, जूते, भोजे, िाई
इ्माहद सबी चीजं ्क ू र से ही रेनी होगी। औय हाॊ आऩका फ्चा ऩढाई भं फहत
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