Page 48 - kaushal
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औय ना्ते उऩयाॊत ऊजाषिान हो होिर ‘जेन रद्दाख’ की ओय ूख ककमा। भौका बी
था द्तूय बी था- भेया ऩचासिाॊ जवभहदिस। जीिन के अधषितक को ऩरयिाय के
साथ रेह-रद्दाख भं भनाने से अ्छा औय हो ही तमा सकता था। फ्चे-फ़े सबी
उ्साहहत थे। होिर की ब्मता, खख़की-दयिाजं की नतकािी सहज ही भन को
भोह यही थी। भेज ऩय फ़ा सा के क औय िंऩेन की फोतर खोरने के साथ सॊगीत
रहयी- एक ्िप्न की तयह भेये जवभहदिस का उ्सि भना। भंने िहाॊ के ऩायॊऩरयक
्मॊजन ‘िेज थुऩका’ का रुफ्त र्रमा जो िाकई अ्मॊत ्िाहदटि था। भंने भन ही
भन ई्िय का िुकिमा अदा ककमा ्जनके आिीिाषद से मह जीिन का विर्िटि
अिसय हभेिा मादगाय यहेगा। यात फायह फजे हभ ऩुन् अऩने फसेये भं रौि आए।
चौथे हदन की िुूआत रात् सात फजे खायडुॊगरा ऩास जाने की थी। या्ते भं
ऩहा़ं ऩय जभी फपष , धूऩ की ककयणं ऩ़ने ऩय चभक यही थीॊ भानो सबी ने चाॊदी
का भुक ु ि ऩहन यखा हो। ऩहा़ं को काि-काि ऩय फनाए दुगषभ िेढे-भेढे या्तं ऩय
हभायी गा़ी सतकष ता फयतती बागी जा यही थी। कई जगह तो या्ते इतने सॊकये
होते कक हभ दभ साधे फैठे यहते। स़कं ऩय जगह-जगह फपष वऩघर-वऩघर कय
एक छोिी नदी के ूऩ भं अठखेर्रमाॊ कयती नजय आती। ऐसे भं गा़ी कपसरने का
डय फना यहता है। राईिय अ्मॊत सतकष हो उठा। रक र नत के अभत नजाये देख हभ
ू
अर्बबूत हए जा यहे थे औय फयफस भोफाईर औय कै भये से त्िीयं खीॊचे चरे जा
ु
यहे थे। हय एक ृ्म दूसये से हि कय औय ही सुॊदय हदखता औय भन बय ही न
ऩाता। तीन घॊिे की मािा ऩ्चात जैसे-जैसे सभुरी तर से ऊॊ चाई फढती जा यही थी
र्सय के एक हह्से भं जक़न, ददष होना आयॊब हो गमा। मह ियीय भं ऑतसीजन
्तय के घिने का ्ऩटि सॊके त था। राईिय सैय्मद बाई फयाफय अऩनी ओय से कोई
न कोई फात छे़ कय हभं उरझाए हए था औय हभ थे कक जैसे-जैसे गा़ी चढान
ु
चढ यही थी, नीॊद अऩने आगोि भं रे यही थी। कक ॊ तु इस मािा भं हय तयह से
सचेत हो जागते यहना ही श्ेम्कय था तमंकक ऑतसीजन ्तय कापी घि जाता है
औय महद नीॊद रग जाए तो जीिन के र्रए घातक र्सधॎध होता है। सभझदायी इसी
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था द्तूय बी था- भेया ऩचासिाॊ जवभहदिस। जीिन के अधषितक को ऩरयिाय के
साथ रेह-रद्दाख भं भनाने से अ्छा औय हो ही तमा सकता था। फ्चे-फ़े सबी
उ्साहहत थे। होिर की ब्मता, खख़की-दयिाजं की नतकािी सहज ही भन को
भोह यही थी। भेज ऩय फ़ा सा के क औय िंऩेन की फोतर खोरने के साथ सॊगीत
रहयी- एक ्िप्न की तयह भेये जवभहदिस का उ्सि भना। भंने िहाॊ के ऩायॊऩरयक
्मॊजन ‘िेज थुऩका’ का रुफ्त र्रमा जो िाकई अ्मॊत ्िाहदटि था। भंने भन ही
भन ई्िय का िुकिमा अदा ककमा ्जनके आिीिाषद से मह जीिन का विर्िटि
अिसय हभेिा मादगाय यहेगा। यात फायह फजे हभ ऩुन् अऩने फसेये भं रौि आए।
चौथे हदन की िुूआत रात् सात फजे खायडुॊगरा ऩास जाने की थी। या्ते भं
ऩहा़ं ऩय जभी फपष , धूऩ की ककयणं ऩ़ने ऩय चभक यही थीॊ भानो सबी ने चाॊदी
का भुक ु ि ऩहन यखा हो। ऩहा़ं को काि-काि ऩय फनाए दुगषभ िेढे-भेढे या्तं ऩय
हभायी गा़ी सतकष ता फयतती बागी जा यही थी। कई जगह तो या्ते इतने सॊकये
होते कक हभ दभ साधे फैठे यहते। स़कं ऩय जगह-जगह फपष वऩघर-वऩघर कय
एक छोिी नदी के ूऩ भं अठखेर्रमाॊ कयती नजय आती। ऐसे भं गा़ी कपसरने का
डय फना यहता है। राईिय अ्मॊत सतकष हो उठा। रक र नत के अभत नजाये देख हभ
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अर्बबूत हए जा यहे थे औय फयफस भोफाईर औय कै भये से त्िीयं खीॊचे चरे जा
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यहे थे। हय एक ृ्म दूसये से हि कय औय ही सुॊदय हदखता औय भन बय ही न
ऩाता। तीन घॊिे की मािा ऩ्चात जैसे-जैसे सभुरी तर से ऊॊ चाई फढती जा यही थी
र्सय के एक हह्से भं जक़न, ददष होना आयॊब हो गमा। मह ियीय भं ऑतसीजन
्तय के घिने का ्ऩटि सॊके त था। राईिय सैय्मद बाई फयाफय अऩनी ओय से कोई
न कोई फात छे़ कय हभं उरझाए हए था औय हभ थे कक जैसे-जैसे गा़ी चढान
ु
चढ यही थी, नीॊद अऩने आगोि भं रे यही थी। कक ॊ तु इस मािा भं हय तयह से
सचेत हो जागते यहना ही श्ेम्कय था तमंकक ऑतसीजन ्तय कापी घि जाता है
औय महद नीॊद रग जाए तो जीिन के र्रए घातक र्सधॎध होता है। सभझदायी इसी
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