Page 47 - kaushal
P. 47
भुनार्सफ सभझा। हिाई अ्डे ऩय बाई को साभने देख भन बािुक हो उठा। गा़ी
भं फैठ हभ िीर ही गे्ि हाउस ऩहॊच गए।
ु
बाई की स्त हहदामत थी कक दो हदन ऩूया आयाभ कयना है, ऐसा कोई काभ
नहीॊ कयना ्जससे थकािि भहसूस हो। नहाने की बी आि्मकता नहीॊ, खाना
खाओ औय रफ्तय ऩय आयाभ कयो। दो-तीन घॊिे आयाभ कयने के फाद फोरयमत
भहसूस होनी रगी। कक ॊ तु हिाई अ्डे ऩय रगाताय होती उ्घोर्णा एिॊ बाई की
सराह को नजयअॊदाज बी नहीॊ ककमा जा सकता था। जैसे-जैसे छह से सात घॊिे
फीते ियीय भं ऩरयितषन भहसूस होने रगा। अफ तक जो ऑतसीजन ियीय भं था
उससे तफीमत ठीक थी कक ॊ तु धीये-धीये उसकी कभी होने ऩय र्सय ददष औय उकिी की
र्िकामत िुू हो गई। हारत मह थी कक देय िाभ बाई के दफ्तय से आने तक
भुझे चाय-ऩाॊच उ्किमाॊ हो चुक थीॊ, ियीय ऩ्त औय कभजोयी भहसूस होने रगी।
बाई तुयॊत ही भुझे अ्ऩतार रे गमा जहाॊ डॉतिय ने सभझामा कक घफयाने की फात
नहीॊ, मह ऩमषिकं के र्रए साभावम है, इसे ‘भाउॊिेन र्सकनेस’ कहते हं। ऩॊरह र्भनि
ऑतसीजन र्सरंडय से ऑतसीजन एिॊ क ु छ र्सय ददष, उकिी की गोरी देने के फाद
डॉतिय ने आयाभ कयने का सुझाि दे भेयी छ ु िी कय दी। अफ तो अ़तारीस घॊिे
आयाभ कयना ही भेयी ऩहरी राथर्भकता थी।
दो हदन ऩूणष आयाभ कयने के फाद तीसये हदन का कामषिभ रेह के ्थानीम
्थरं का रभण था। अफ तक ियीय बी रेह के भौसभ अनुसाय कापी हद तक
ढर चुका था। रेह भं रात् ऩाॊच फजे ही सूमष उदम होता है औय हदन चढते
गचरगचराती धूऩ का एहसास होने रगता। सफसे ऩहरे रेह-रद्दाख की भिहय
ू
गथतसे भोना्री भं हभने कदभ यखा। बगिान फुधॎध की वििारकाम रनतभा के
दिषन कय आगे फढते हए हभने िाॊनत ्तूऩ, हॉर ऑप पे भ, भैगनेहिक हहर, यंचन
ु
्क ू र (कपकभ री इडडमि की जहाॊ िूहिॊग हई थी), सॊगभ प्िाइॊि (र्सॊधु एिॊ झॊ्काय
ु
नदी का सॊगभ), गुू्िाया ऩ्थय साहहफ भं गुू नानक देि के आगे भ्था िेक
रभण का आनॊद र्रमा औय सीधे बाई के घय ऩहॊच गए। िाभ चाम की चु््कमं
ु
30
भं फैठ हभ िीर ही गे्ि हाउस ऩहॊच गए।
ु
बाई की स्त हहदामत थी कक दो हदन ऩूया आयाभ कयना है, ऐसा कोई काभ
नहीॊ कयना ्जससे थकािि भहसूस हो। नहाने की बी आि्मकता नहीॊ, खाना
खाओ औय रफ्तय ऩय आयाभ कयो। दो-तीन घॊिे आयाभ कयने के फाद फोरयमत
भहसूस होनी रगी। कक ॊ तु हिाई अ्डे ऩय रगाताय होती उ्घोर्णा एिॊ बाई की
सराह को नजयअॊदाज बी नहीॊ ककमा जा सकता था। जैसे-जैसे छह से सात घॊिे
फीते ियीय भं ऩरयितषन भहसूस होने रगा। अफ तक जो ऑतसीजन ियीय भं था
उससे तफीमत ठीक थी कक ॊ तु धीये-धीये उसकी कभी होने ऩय र्सय ददष औय उकिी की
र्िकामत िुू हो गई। हारत मह थी कक देय िाभ बाई के दफ्तय से आने तक
भुझे चाय-ऩाॊच उ्किमाॊ हो चुक थीॊ, ियीय ऩ्त औय कभजोयी भहसूस होने रगी।
बाई तुयॊत ही भुझे अ्ऩतार रे गमा जहाॊ डॉतिय ने सभझामा कक घफयाने की फात
नहीॊ, मह ऩमषिकं के र्रए साभावम है, इसे ‘भाउॊिेन र्सकनेस’ कहते हं। ऩॊरह र्भनि
ऑतसीजन र्सरंडय से ऑतसीजन एिॊ क ु छ र्सय ददष, उकिी की गोरी देने के फाद
डॉतिय ने आयाभ कयने का सुझाि दे भेयी छ ु िी कय दी। अफ तो अ़तारीस घॊिे
आयाभ कयना ही भेयी ऩहरी राथर्भकता थी।
दो हदन ऩूणष आयाभ कयने के फाद तीसये हदन का कामषिभ रेह के ्थानीम
्थरं का रभण था। अफ तक ियीय बी रेह के भौसभ अनुसाय कापी हद तक
ढर चुका था। रेह भं रात् ऩाॊच फजे ही सूमष उदम होता है औय हदन चढते
गचरगचराती धूऩ का एहसास होने रगता। सफसे ऩहरे रेह-रद्दाख की भिहय
ू
गथतसे भोना्री भं हभने कदभ यखा। बगिान फुधॎध की वििारकाम रनतभा के
दिषन कय आगे फढते हए हभने िाॊनत ्तूऩ, हॉर ऑप पे भ, भैगनेहिक हहर, यंचन
ु
्क ू र (कपकभ री इडडमि की जहाॊ िूहिॊग हई थी), सॊगभ प्िाइॊि (र्सॊधु एिॊ झॊ्काय
ु
नदी का सॊगभ), गुू्िाया ऩ्थय साहहफ भं गुू नानक देि के आगे भ्था िेक
रभण का आनॊद र्रमा औय सीधे बाई के घय ऩहॊच गए। िाभ चाम की चु््कमं
ु
30