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7. सभम का भह् व न ऩहचानना: ‘कर कये सो आज कय, आज कये सो अफ, ऩर

भं ररम होमेगी, फहरय कयेगा कफ’ अथाषत् जो क ु छ कयना हो उसे िीर कय रेना


चाहहए, उसभं आर् म नहीॊ कयना चाहहए। कबी बी, क ु छ बी हो सकता है, अत: जफ

हभ सभम को भह् ि नहीॊ देते हं तो नन््चत तौय ऩय अऩने ऩैय ऩय ही क ु क हा़ी

भायते हं। नुकसान ककसी अव म का नहीॊ होता है, ् िमॊ का ही होता है। हभने


फचऩन भं नानी मा दादी से एक कहानी अि् म ही सुनी होगी। कछ ु ए औय खयगोि

के दौ़ की। कछ ु आ खयगोि से दौ़ भं आगे ननकर जाता है त मं? कायण से हभ


बरीबाॊनत ऩरयगचत हं खयगोि का आरसऩन। ‘अफ ऩछताए होत त मा जफ गचड डमाॊ

चुग गई खेत’। इसीर्रए मे फेहद जूयी है कक हभ सभम के साथ चरे एिॊ इसे

हक के भं न रं। ककसी ने ठीक ही कहा है:-


जो सोमा है, वह कसरमुग है।

जो फैठ गमा, वह ्वाऩय है।

जो खडा हो गमा, रेता है।

जो चर ऩडा, वह सतमुग है।


अत: ‘चयैवैनत चयैवैनत’। चरते यहो, चरते यहो।


8. राक ृ नतक मा भानवजननत ऩरयज्थनतमाॊ: जफ जो जो होना है, तफ सो सो होना

है। मे िे ऩरय््थनतमाॊ हं जफ हभ चाहकय बी क ु छ नहीॊ कय सकते हं। राक र नतक

आऩदा जैसे फाढ, बूकॊ ऩ, सुनाभी आहद से हभ न के िर बौनतक सॊऩ््त का नुकसान


सहते हं फ्कक अऩने अजीज अथाषत अऩने जान से प् मायं को बी खो देते हं। ठीक

इसी तयह की ऩरय््थनतमाॊ भानिजननत आऩदाओॊ जैसे अ््नकाॊड, आतॊकिादी


गनतविगधमाॊ, घोिारं आहद तथा नीच-अधभ रिर््तमं जैसे फरा् काय, चोयी-डकै ती

कयना, दूसयं की सॊऩ््त ह़ऩना आहद जो हभ अऩने ननजी ् िाथं मा अऩने

ऺखणक पामदे के र्रए कयते हं ्जसभं नुकसान हभाये अऩनं मा अव म रोगं का


होता है। हभ इसे माद कयते हं, योते हं, औय अऩनी ्जॊदगी को सोच-सोच कय नयक




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