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उ्वि्न कय देता है ऩयॊतु िे हताि नहीॊ होते, तमंकक उनकी भनुटम औय उसके

साभथमष भं अिूि आ्था है। उवहं वि्िास है कक "मुधॎध औय िोर्ण के कोराहरं के


बीतय भानिता की देिी चुऩचाऩ ककवतु नन््चत गनत से विजम-मािा की ओय फढ

यही है। रोहाय की दुकान की खिाखि औय गदो-गुफाय से िॊककत होने िारे बूर

जाते हं कक मह ि्तुत् िीणा के ताय की तैमायी का कोराहर है। ्जस सभम मह


िीणा र्तुत हो जाएगी, उस सभम उसकी भनोहय ध्िननह्रदम को आनॊद–वि्िर

कय देगी। इस रकाय भेया वि्िास है कक भनुटमता की भोहन-िीणा अि्म र्तुत


होगी।" ्वििेदी जी के साहह्म भं िखणषत भानि सॊऩूणष भानि है, िह सर्टि के

विकास का नामाफ नभूना है, उसभे अदम्म ्जजीविर्ा है, सभ्त फाधाओॊ का

साभना कयता हआ िह ननयॊतय रगनत ऩथ ऩय अरसय हो यहा है, िह सॊ्क र नत का


अर्बवन अॊग है, भनुटमता का आश्म-्थर है, ऩयॊऩया से जु़ा है ऩय उनसे फॊधा नहीॊ

है, फुवधॎध औय ह्रदम भं साभॊज्म ्थावऩत कयने भं सभथष है। उनकी ृ्टि भं


भनुटमता से फढ कय क ु छ नहीॊ, िही सिोऩरय है। ्वििेदी जी कीहाहदषक काभना है

कक भनुटम अऩने सभ्त ऊऩयी विबेदं को, आऩसी वियोधं को दयककनाय कय एक

ऐसे सॊसाय की सुनहयी ऩीहठका तैमाय कये जहाॉ एक दूसये से र्भरने के र्रए र्सपष


भनुटम होना ही एकभाि मो्मता हो। जानत नहीॊ, धभष नहीॊ, धन नहीॊ, हैर्समत नहीॊ

अथाषत कोई फाधा उनके आऩसी सॊफॊधं को किु न फना सके , तबीिाॊनत ्थाऩना का

्िप्न साकाय होगा औय आऩसी रनत्ऩधाष की सभा्प्त का भागष रि्त होगा।


ननटकर्षत् मह कहा जा सकता है कक ्वििेदी जी का भानितािाद अऩनी

विर्िटि बॊगगभा भं ऩाठकं के साभने उऩ््थत होता है। इसभं सॊदेह की कोई


गुॊजाईि ही नहीॊ है कक ्वििेदी जी हहॊदी साहह्म के एक रभुख विचायकं भं एक

हं औय उवहंने हहॊदी साहह्म जगत भं भानितािादी अिधायणा की नीॊि को ऩु्ता

फनाने भं एक भह्िऩूणष बूर्भका का ननिषहन ककमा है। उनके रगबग सबी ननफॊधं


भं भानितािादी ृ्टिकोण र्भरता है। भनुटम, उसका सॊघर्ष, उसकी ्जजीविर्ा,

फाधाओॊ के साभने हगथमाय न डारने की उसकी ्जद, सभ्त रनतक ू रताओॊ को



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