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मुधॎध भं सेना की असाधायण फहादुयी के सुफूत कायगगर आने िारे मुिाओॊ भं पौजी

फनने का ज्फा ऩैदा कयते हं। अभय जिान ्मोनत के ठीक नीचे रार ऩ्थय ऩय


कवि भाखनरार चतुिेदी की भिहय ऩॊ्ततमाॊ फयिस ध्मानाकर्षण कयती हं-

“चाह नहीॊ, भं सुयफारा के गहनं भं गूॊथा जाऊॊ ,

चाह नहीॊ रेभी-भारा भं रफॊध प्मायी को ररचाऊॊ ।


भुझे तो़ रेना, िनभारी, उस ऩथ भं देना तुभ प ं क,

भातरबूर्भ ऩय िीि चढाने, ्जस ऩथ जाएॊ िीय अनेक।”


उसी रकाय अभय जिान ्मोनत के ठीक ऩीछे सुनहये अऺयं से सबी िहीदं के

नाभ औय िाॊनतकायी याभ रसाद रफ््भर की ऩॊ्ततमाॊ अॊककत हं-

“िहीदं की गचताओॊ ऩय रगंगे हय फयस भेरे,


ितन ऩय भय र्भिने िारं का मही फाकी ननिाॊ होगा।”

इस मुधॎध भं सेना के 527 जिानं ि अगधकारयमं ने िीयगनत ऩाई थी। कायगगर


िाय भेभोरयमर के ऩरयसय भं वििारकाम फोपोसष गन ख़ा हदखा, ्जसके सिीक

रहायं ने चोहिमं ऩय फैठे दु्भन के छतके छ ु ़ा हदए थे। इस ऩािन िीयबूर्भ ऩय

आकय आॊखे नभ हो गं औय हाथ खुद-फ-खुद सैकमूि की भुरा भं उठ गए।


देिब्तत की फातं तो कइमं से सुनी ऩय िा्ति भं देि-रेभ के र्रए जान

वमौछािय कयने िारे हभाये पौजी बाई ही है। हभं उन ऩय नाज है। दो घॊिे सभम

्मतीत कयने के फाद हभ रेह ््थत हदहाय (डडप ं स इॊ्िी्मूि ऑप हाई


एरिी्मूड रयसचष) ऩहॊचे। महाॊ अनत आधुननक तयीके से इतने दुटकय भौसभ भं

िैऻाननकं ने कक्भ-कक्भ के परं औय स्ब्जमं की खेती की हई थी। मह


जानकय आ्चमष हआ कक तकयीफन 11,000 गचकक्सकीम ऩौधे के िर रेह-रद्दाख

भं ही उऩरब्ध हं। महाॊ विर्बवन रकाय की रेह फेरयमाॊ ऩाई जाती हं, ्जनके त्ि

ियीय के ऩोर्ण के र्रए ननहामत भह्िऩूणष हं।


रेह-रद्दाख की ऩूयी मािा के दौयान घूभना-कपयना तो ऩमाषप्त हो गमा था, कक ॊ तु

खयीदायी िेर् थी। अत् ूख फाजाय की ओय कय र्रमा। यॊग-रफयॊगी भोनतमं की



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