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औय भहािीय की "्जमो औय जीने दो" की अिधायणा तथा भहा्भा गाॊधी के "स्म

औय अहहॊसा" के र्सधॎधाॊत ने हभायी इसी ऩयम्ऩया को आगे फढामा है। फर का रमोग


कयके अऩने वियोधी ऩय विजम तो ऩिु बी हार्सर कय रेते हं, रेककन इॊसान से

फुवधॎधजीिी होने के नाते भानिीम अऩेऺा की जाती है कक िह कभ से कभ हहॊसा का

रमोग कयके अऩने वियोधी ऩय विजम हार्सर कयं। हहॊसा के भाध्मभ से हार्सर


विजम की कीभत दोनं ऩऺं को चुकानी होती है, जफकक अहहॊसा से हार्सर विजम

ऩय दोनं ही ऩऺ विजेता होते हं। वमामऩार्रका का बी सुविचारयत र्सधॎधाॊत है कक


"चाहे अनेक अऩयाधी छ ू ि जाएॊ, रेककन एक ननदोर् को सजा नहीॊ होनी चाहहए"।

आजकर जनता भं सहहटणुता, ्माग एिॊ फर्रदान की बािना रुप्त होती जा यही है

औय अगधकाॊि रोगं भं मह सोच कामभ मा ्थावऩत हो यही है कक "भुझे खयंच


तक नहीॊ आनी चाहहए, चाहे अनेक ननदोर् ददषनाक भौत का र्िकाय बरे ही हो

जाए" औय मही सोच हभं अऩयागधमं मा आतॊकिाहदमं के खखराप रनतहहॊसा की


ओय अरसय कयताहै। भानिता ऩय आधारयत वमाम ्मि्था कबी बी सजा के ूऩ

भं अऩयाधी से ि ू यतभ तयीके से फदरा रेने की भॊिा मा ृ्टिकोण का सभथषन

नहीॊ कयती है।


अॊत भं, भं देि की वििेकिीर जनता औय इसके कणषधायं के साथ-साथ हहॊसा

के गरत या्ते ऩय अरसय आतॊकिाहदमं के र्रए ई्िय से र्सपष मही राथषना कय

सकता हॊ कक " सफको स्भनत दे बगवान " ताकक मे रोग हहॊसा का या्ता छो़कय


देि के सिांगीण विकास भं अऩनी ऊजाष एिॊ सॊसाधनं का सदुऩमोग कयं। सभाज

के फुवधॎधजीविमं को मुधॎधोवभाद की ््थनत को उ्ऩवन कयने से फचना चाहहए औय


सभाज के सबी िगं के फीच वि्िास एिॊ बाईचाये का भाहौर कामभ कयना

चाहहए।

जम हहॊद, जम बायत

याके श क ु भाय गु्ता,


अवय सचचव



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