Page 54 - kaushal
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है। मही सभऩषण उसके र्भिन भं सपरता का भागष रि्त कयता है मा सपरता
हदराता है। मे रोग हभाये सभाज का एक अिूि, भह्िऩूणष एिॊ ऊजाषिान हह्सा है,
रेककन इवहोनं हहॊसा का एकभाि गरत या्ता अऩना र्रमा है। महद आतॊकिादी
सभूहं से हहॊसा का त्ि हिा हदमा जाए तो हभ ऩाएॊगे कक इनकी अगधकाॊि भाॊगे
आगथषक, साभा्जक मा याजनीनतक ही होती है ्जनका सभाधान फातचीत के
भाध्मभ से हो सकता है।
हभाये याटरवऩता भहा्भा गाॊधी ने कहा था कक "घरणा अऩयाध से कयो, अऩयाधी
से नहीॊ" तमंकक हभाया देि ऩयॊऩयागत ूऩ भं अहहॊसा के या्ते ऩय ही चरता यहा
है। रोकतॊि भं हहॊसा के र्रए कोई ्थान नहीॊ होता है औय दुननमा भं कोई बी
ऐसी सभ्मा नहीॊ है, ्जसका सभाधान अहहॊसा एिॊ फातचीत से न हो सकता हो।
महद आतॊकिाहदमं की हहॊसा अनुगचत, ननॊदनीम एिॊ दॊडनीम है तो इसके र्मु्तय
भं सयकायी रनतहहॊसा के ूऩ भं सुयऺा फरं ्िाया की जा यही हहॊसा बी भानिीम
नहीॊ है। आतॊकिाहदमं की हहॊसा को योकने के र्रए हभं हभेिा सतकष यहना चाहहए
औय उतना ही फर रमोग होना चाहहए ्जससे घिना को योका जा सके । सयकायी
रनतहहॊसा की फजाम हभाये िासकं को फातचीत एिॊ वि्िास का भाहौर ्थावऩत
कयने ऩय अगधक ध्मान क ं हरत कयना चाहहए। आि्मकता र्सपष सबी रकाय के
ऩूिाषरहं से भुतत होकय खुरे भन से यचना्भक भाहौर फनाकय सबी को फातचीत
के र्रए एक नई िुूआत कयने की है। इन आतॊककमं ने गरती से हहॊसा का या्ता
अऩना र्रमा है इसर्रए आि्मकता इवहं सही भागषदिषन देने की है। मे आतॊकी बी
ऊजाषिान मुिा है औय महद इनकी ऊजाष एिॊ सॊसाधनं को विकास कामं की ओय
भो़ने का रमास ककमा जाए तो सॊबि है क ु छ असपरताओॊ मा कहठनाइमं के फाद
हभ रोग इनके विचायं को फदरकय इवहं सभाज की भु्मधाया भं राने भं सपर
हो सक ं ।
हभाये देि की अस्म को स्म से, हहॊसा को अहहॊसा से, अॊधकाय को रकाि
से, अऩयागधमं को दमा एिॊ ऺभा से जीतने की हभायी ऩयम्ऩया यही है। बगिान फुधॎध
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हदराता है। मे रोग हभाये सभाज का एक अिूि, भह्िऩूणष एिॊ ऊजाषिान हह्सा है,
रेककन इवहोनं हहॊसा का एकभाि गरत या्ता अऩना र्रमा है। महद आतॊकिादी
सभूहं से हहॊसा का त्ि हिा हदमा जाए तो हभ ऩाएॊगे कक इनकी अगधकाॊि भाॊगे
आगथषक, साभा्जक मा याजनीनतक ही होती है ्जनका सभाधान फातचीत के
भाध्मभ से हो सकता है।
हभाये याटरवऩता भहा्भा गाॊधी ने कहा था कक "घरणा अऩयाध से कयो, अऩयाधी
से नहीॊ" तमंकक हभाया देि ऩयॊऩयागत ूऩ भं अहहॊसा के या्ते ऩय ही चरता यहा
है। रोकतॊि भं हहॊसा के र्रए कोई ्थान नहीॊ होता है औय दुननमा भं कोई बी
ऐसी सभ्मा नहीॊ है, ्जसका सभाधान अहहॊसा एिॊ फातचीत से न हो सकता हो।
महद आतॊकिाहदमं की हहॊसा अनुगचत, ननॊदनीम एिॊ दॊडनीम है तो इसके र्मु्तय
भं सयकायी रनतहहॊसा के ूऩ भं सुयऺा फरं ्िाया की जा यही हहॊसा बी भानिीम
नहीॊ है। आतॊकिाहदमं की हहॊसा को योकने के र्रए हभं हभेिा सतकष यहना चाहहए
औय उतना ही फर रमोग होना चाहहए ्जससे घिना को योका जा सके । सयकायी
रनतहहॊसा की फजाम हभाये िासकं को फातचीत एिॊ वि्िास का भाहौर ्थावऩत
कयने ऩय अगधक ध्मान क ं हरत कयना चाहहए। आि्मकता र्सपष सबी रकाय के
ऩूिाषरहं से भुतत होकय खुरे भन से यचना्भक भाहौर फनाकय सबी को फातचीत
के र्रए एक नई िुूआत कयने की है। इन आतॊककमं ने गरती से हहॊसा का या्ता
अऩना र्रमा है इसर्रए आि्मकता इवहं सही भागषदिषन देने की है। मे आतॊकी बी
ऊजाषिान मुिा है औय महद इनकी ऊजाष एिॊ सॊसाधनं को विकास कामं की ओय
भो़ने का रमास ककमा जाए तो सॊबि है क ु छ असपरताओॊ मा कहठनाइमं के फाद
हभ रोग इनके विचायं को फदरकय इवहं सभाज की भु्मधाया भं राने भं सपर
हो सक ं ।
हभाये देि की अस्म को स्म से, हहॊसा को अहहॊसा से, अॊधकाय को रकाि
से, अऩयागधमं को दमा एिॊ ऺभा से जीतने की हभायी ऩयम्ऩया यही है। बगिान फुधॎध
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