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ऩानी तेये ूऩ हजाय



आज कर देि भं चचाष का एक औय विर्म साभने आ गमा है- मह है ऩीने

के ऩानी का अकार। साभावमत: चचाष खेतं भं फारयि न होने की िजह से सूखा


ऩ़ने मा गाॊिं भंऩीने का ऩानी ऩहॊचाने की मोजनाएॊ फनाने की होती थी। मह एक

साथषक ऩरयितषन है, कक अफ फातचीत ऩानी के रोऩना होने की होती है। ऐसा नहीॊ है

कक मह विर्म रथभ फाय ककसी ने उठामा है। रगबग अ्सी-नब्फे िर्ष ऩहरे गाॊधी


जी ने जर सॊचम की ओय देि का ध्मान आक र टि कयने का रमास ककमा था,

रेककन उस सभम उनकी फातं की तयप अगधक ध्मान नहीॊ हदमा गमा। एक मुग

रटिा औय औसत विचायकं भं मही अवतय होता है। इस विर्म ऩय आगे फढने से


ऩूिष आइमे जर के साभावम इनतहास बूगोर को सभझने का रमास कयं। ऩरथिी ऩय

इकह्तय रनतित जर तथा उवतीस रनतित ्थर है। भानि ियीय भं बी जर

औय अवम घिकं का अनुऩात मही है, इस से भानि का जर के साथ नैसगगषक


रय्ता र्सधॎध होता है। ऩरथिी ऩय जर औय थर के अनुऩात भं ऩरयितषन आना इतना

आसान नहीॊ है। अथाषत वि्ि की जनसॊ्मा ्जतनी बी फढे, ऩरथिी ऩय जर की


भािा रगबग ््थय यहेगी। क ु दयत हभायी भाता है। िह हये बये भैदानं, फीह़

दरदरं, बीर्ण जॊगरं, तऩते भु्थरं, ऊॉ चे ऩिषतं तथा फपीरे हहभर्िखयं भं कोई

बेद बाि नहीॊ कयती। मे सफ उसे अऩने ियीय के अॊगं की बाॊनत ही वरम हं। इन


भं से जफ ककसी के साथ बी कोई छे़-छा़ होती है, तो रक र नत अऩने ही तयीके से

रनतकाय कयती है।


खैय फात जर की हो यही है। जर जफ जभता है, तो अिुवधॎधमाॊ उससे अरग

होने रगती हं। जफ जर उफरता है, तो उसकी बाऩ को आसुत कयने से बी हभं

िुधॎध जर राप्त हो सकता है। महाॉ भानि जानत के र्रए एक सवदेि नछऩा है।


अयफ देिं भं ऩानी की बायी कभी है। बायतिार्समं के र्रए उस अबाि का

अनुभान रगना सयर नहीॊ है। ऩानी िाहनं भं बयकय कोसं दूय से ढो कय राना




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