Page 59 - kaushal
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राचीन तयीके से र्बवन है। रातूय भं ऐसा हभेिा नहीॊ होता है। हभाये देि के
विर्बवन बागं के िार्समं की जीिन िैरी को तयािने भं हभाये बूगोर का फ़ा
हाथ है। हभाये महाॉ बौगोर्रक ऩरय््थनतमाॊ इस रकाय हं कक महाॉ 90% िर्ाष चाय
भहीनं भं होती है औय िेर् आठ भहीने भं के िर 10% छीॊिे ऩ़ते हं। मही कायण है
कक जफ ऩूिी बाग भं, असभ इ्माहद फाढ की तफाही से कयाह यहे होते हं, तो
ऩ््चभी बायत भं िोरे फयसते हं। मह विर्भता हभं र्सखाती है की अनतिर्टि के
हदनं भं जर सॊचम कयके उसका िर्ष बय उऩमोग ककमा जाए। देि भं जर सॊचम
के र्रए मा तो राक र नतक जरािम झीरं थे, मा ताराफं का ननभाषण कयके जर
सॊचम ककमा जाता था। देि के फ़े सरािं के फाये भं अननिामष ितष मह कही जाती
है कक उवहंने स़कं का ननभाषण कयिामा, उनके ककनाये छामादाय िरऺ रगिाए, क ु एॊ
औय फािड़माॊ फनिाए। ऩेम जर की भाॊग हो मा र्सॊचाई की आि्मकता, सफकी
ऩूनतष जर सॊचम से होती थी, तमंकक सभाज अऩने देि की बौगोर्रक ऩरय््थनतमं
औय जरिामु के जरिे से ऩरयगचत था। हभ जरिामु को ननम्वित नहीॊ कय सकते,
न ही हभ भौसभ चि को फदर सकते। रेककन जो क ु छ हभं क ु दयत से र्भरा है,
उसे हभ अऩनी आि्मकता अनुसाय सोच-सभझ कय इ्तेभार कय सकते हं। जफ
क ु दयत घनघोय िर्ाष कयती है, तो हभं चाहहए कक उसकी कोई फूॊद फेकाय ना जाने दं,
ताकक हभं आि्मकता के सभम प्मासा औय जभीन को फॊजय न यहना ऩ़े।
इस तथम को ध्मान भं यखते हए देि भं आहदकार से जर सॊचम के र्रए
ु
ताराफं का ननभाषण ककमा जाता यहा है। ताराफं के फाये भं कहना होगा कक ताराफ
अनामास खोदे गए ग्ढे भाि नहीॊ होते। मे एक वििेर् तकनीक ऩय आधारयत होते
थे। ताराफं का ननभाषण कयने िारे कायीगय अरग होते थे। उवहं सभाज भं सम्भान
ऩूणष दजाष राप्त था। ताराफ फ्ती से फाहय, रेककन फ्ती के ननकि होते थे। ऩािस
ऋतु का िणषन कयते हए तुरसी दास जी कहते हं 'र्सभि-र्सभि जर बयहीॊ
ु
त़ागा।' अथाषत मह ताराफं का ्िबाि ही है कक उनभं चायं ओय से जर खखॊचा
चरा आता है। ताराफ इस रकाय फनाए जाते थे कक महद िे रफारफ बय जाएॊ, तो
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विर्बवन बागं के िार्समं की जीिन िैरी को तयािने भं हभाये बूगोर का फ़ा
हाथ है। हभाये महाॉ बौगोर्रक ऩरय््थनतमाॊ इस रकाय हं कक महाॉ 90% िर्ाष चाय
भहीनं भं होती है औय िेर् आठ भहीने भं के िर 10% छीॊिे ऩ़ते हं। मही कायण है
कक जफ ऩूिी बाग भं, असभ इ्माहद फाढ की तफाही से कयाह यहे होते हं, तो
ऩ््चभी बायत भं िोरे फयसते हं। मह विर्भता हभं र्सखाती है की अनतिर्टि के
हदनं भं जर सॊचम कयके उसका िर्ष बय उऩमोग ककमा जाए। देि भं जर सॊचम
के र्रए मा तो राक र नतक जरािम झीरं थे, मा ताराफं का ननभाषण कयके जर
सॊचम ककमा जाता था। देि के फ़े सरािं के फाये भं अननिामष ितष मह कही जाती
है कक उवहंने स़कं का ननभाषण कयिामा, उनके ककनाये छामादाय िरऺ रगिाए, क ु एॊ
औय फािड़माॊ फनिाए। ऩेम जर की भाॊग हो मा र्सॊचाई की आि्मकता, सफकी
ऩूनतष जर सॊचम से होती थी, तमंकक सभाज अऩने देि की बौगोर्रक ऩरय््थनतमं
औय जरिामु के जरिे से ऩरयगचत था। हभ जरिामु को ननम्वित नहीॊ कय सकते,
न ही हभ भौसभ चि को फदर सकते। रेककन जो क ु छ हभं क ु दयत से र्भरा है,
उसे हभ अऩनी आि्मकता अनुसाय सोच-सभझ कय इ्तेभार कय सकते हं। जफ
क ु दयत घनघोय िर्ाष कयती है, तो हभं चाहहए कक उसकी कोई फूॊद फेकाय ना जाने दं,
ताकक हभं आि्मकता के सभम प्मासा औय जभीन को फॊजय न यहना ऩ़े।
इस तथम को ध्मान भं यखते हए देि भं आहदकार से जर सॊचम के र्रए
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ताराफं का ननभाषण ककमा जाता यहा है। ताराफं के फाये भं कहना होगा कक ताराफ
अनामास खोदे गए ग्ढे भाि नहीॊ होते। मे एक वििेर् तकनीक ऩय आधारयत होते
थे। ताराफं का ननभाषण कयने िारे कायीगय अरग होते थे। उवहं सभाज भं सम्भान
ऩूणष दजाष राप्त था। ताराफ फ्ती से फाहय, रेककन फ्ती के ननकि होते थे। ऩािस
ऋतु का िणषन कयते हए तुरसी दास जी कहते हं 'र्सभि-र्सभि जर बयहीॊ
ु
त़ागा।' अथाषत मह ताराफं का ्िबाि ही है कक उनभं चायं ओय से जर खखॊचा
चरा आता है। ताराफ इस रकाय फनाए जाते थे कक महद िे रफारफ बय जाएॊ, तो
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