Page 58 - kaushal
P. 58
िुभाय होता है, गॊगा के ककनाये है। इसे देि की साॊ्क र नतक याजधानी भाना जाता है।

रगबग सबी साॊ्क र नतक एिॊ ऩमषिन क ं र नहदमं मा झीरं के ककनाये, मा कपय फपष


से ढकी चोहिमं के सा्वनध्म भं ही फस सके हं। ऋवर्के ि, हरय्िाय, रमाग, एिॊ

अभयनाथ इसके उदाहयण हं। बोऩार औय नैनीतार नगयं के नाभ िहाॊ के तारं के

आधाय ऩय ऩ़े हं। श्ीनगय की िान डर झीर है। पयीदाफाद की िोबा िहाॊ की


फ़खर झीर से थी। हैदयाफाद हाई-िेक र्सिी फन गमा, रेककन िहाॊ की हसैन सागय

झीर के रफना उसके अ््त्ि की ककऩना असम्बि है। बोऩार भं जर की


आि्मकता िहाॊ की झीर ऩूयी कयती है। उदमऩुय को झीरं की नगयी कहा जाता

है। फॊगरौय नगय भं बी जर की आऩूनतष िहाॊ की झीरं से होती है। जफ भं ऩहरी

फाय फॊगरौय गमा तो र्भि भुझे िहाॊ की एक वि्मात झीर हदखाने रे गए। उवहंने


भुझे फतामा कक मह झीर नगय के जीिन का आधाय है, िहय को साये सार ऩानी

महीॊ से र्भरता है। भं भूखषतािि ऩूछ फैठा, "अगय झीर का ऩानी कभ ऩ़ जाए


तो?" र्भि भेया भुॊह ताकने रगे। उवहं वि्िास ही नहीॊ हो यहा था कक कोई

सभझदाय आदभी ऐसा सोच सकता है, मा उनके नगय के फाये ऐसा अऩिगुन भेये

भन भं आमा तो आमा कै से?" अगय याटरीम याजधानी हदकरी की चचाष कयं, तो


इतना ही कहना कापी होगा कक महाॉ बी विरुप्त हए ताराफं को ढूॊढ ननकारने के

आदेि सभम-सभम ऩय वमामारम देते यहते हं। रेककन इतना सफ होने के फािजूद,

ग्त हदनं एक गचॊताजनक सभाचाय सुनने भं आमा। रातूय ्जरे भं जर आऩात


कार घोवर्त कय हदमा गमा है। अथाषत ऩानी के ऩायम्ऩरयक स्रोतं भं ऩानी चुक

गमा है। इसर्रए कहीॊ दूय-दयाज से ऩानी िंकयं के जरयमे रा कय वितरयत ककमा


जाता है। जर वितयण के दौयान हाथाऩाई की नौफत आ यही थी, इसर्रए जर-िाहन

के ऩास ऩाॊच से अगधक ्म्ततमं के ख़े होने ऩय योक रगा दी गई। मे सफ उस

देि भं हो यहा है, ्जसका गौयि गीत है, 'गोदी भं खेरती हं, इसकी हजायं नहदमाॊ'।


महाॊ मह ्ऩटि कय देना उगचत होगा कक रातूय भं जर-िाहनं से जर ऩहॉचाना

औय कपय उस ऩय तारा रगाना, याज्थान भं दूय से ऊॊ िं ऩय जर ढोकय राने के



41
   53   54   55   56   57   58   59   60   61   62   63