Page 65 - kaushal
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जो हो गमा, सो हो गमा,

् मूॊ तूझे है अपसोस सा,


जो है आज,

औय है वतिभान,

फीत गमा जो कर,


औय वाऩस न आने वारा वो ऩर,

सफक ु छ बूर,


् वागत कय,

नूतन नमा सा,

चर उठ औय फ़,


चूभ अऩनी भॊजजर को,

कक र् म को बी है आज तेया इॊतजाय-सा।


कबी-कबी हभ दूसयं को अगय ऩयेिान कयते देखते हं तो हभ बी िैसा ही

कयने रगते हं। मह उगचत नहीॊ है। इससे तकयाय फढने रगती है। हभं अ् छे से

ऩता है कक इससे हभायी ्जॊदगी नयक जैसी हो सकती है। इस तयह हभ ्जॊदगी तो


जीते हं ऩय नकाया् भक ऩरय््थनत का र्िकाय होने से खुद को नहीॊ योक सकते।

इस ््थनत भं सही सोच मे ही होनी चाहहए कक खुद को सकाया् भक फनामेयखने

के र्रए जो बी कयना ऩ़े, कयं, जैसे विऩयीत ऩरय््थनतमं भं बी भु् क ु याना, खुि


यहना, भानर्सक सफरता फनामे यखना, आ् भवि् िास नहीॊ खोना, जैसे अ् छे हदन

आमे थे िैसे ही फुये हदन बी िर जामंगे, सही फात कयना, अऩना ध् मान ककसी ओय


रगाना, खुद को अव म काभं भं ् म् त यखना, ऩयभा् भा को धव मिाद देना कक भानो

जैसे िो आऩ को इस विऩयीत ऩरय््थनत से अि् म ननकारेगा, इ् माहद।

हभं अि् म ही ननम् न फात का ध् मान यखना चाहहए, चूॊकक इस ऩय ही मह


ननबषय कयता है कक हभ ितषभान मा बविट म भं ् िमॊ को कै सा फनाए यखते हं:-





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