Page 66 - kaushal
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1. ् वमॊ की गरती: फोए ऩे़ फफूर का तो आभ कहाॉ से होम, जैसा कभष कयोगे
िैसा पर र्भरेगा, कय फुया तो होम फुया, जैसी कयनी िैसी बयनी, इधय के यहे न
उधय के यहे, एक हाथ से तारी नहीॊ फजती, आऩ बरे तो जग बरा, Good mind,
good find, इ् माहद भुहािये मा कहािते महद कोई आऩ से कहे मा आऩकी ओय
इॊगगत कय फोरे तो इसभं कोई अनत् मो्तत नहीॊ कक आऩ की कोई गरती नहीॊ
औय आऩ ऩाक-साप हं। कबी-कबी ऐसा हो जाता है कक हभ गरती कय के बी
सीनाजोयी कयने रग जाते हं, कपय फाद भं हभं अऩनी गरती का एहसास होता है
औय ऩछतािा बी होता है कक हभं ऐसा नहीॊ कयना चाहहए था। हभ भापी बी नहीॊ
भाॊगते हं ताकक हभ ककसी के साभने नीचे न हं। औय महद हभ भापी भाॊग बी
रेते हं तो हभं अपसोस रगा यहता है। सभम मही कहता है ककजो हो गमा सो हो
गमा, उसका ऩछतािा छो़कय हभं आगे फढना चाहहए त मंकक फीता हआ ऩर िाऩस
ु
नहीॊ आ सकता, ऩय कपय बी हभं अऩनी गरती को दोहयाना नहीॊ चाहहए।
2. दूसयं की गरती: जफ हभ क ु छ अ् छा कय यहे होते हं मा अऩने से ही भतरफ
यखते हं मा हभायी रोकवरमता फहत ् मादा हो जाती है तो रोगं को बी ईट माष मा
ु
फैचेनी सी हो जाती है। मा इसे मूॊ कहं कक क ु छ रोग दूसयं के जीिन भं ही ताक-
झाॊक कयने भं रगे यहते हं। ऐसे भं नन््चत तौय ऩय हभ दूसयं की गरती का
र्िकाय हो सकते हं अथिा, िे हभं र् म कयके ही गरती कयते हं, मा क ु छ ऐसा
कयते हं ्जससे हभाये आ् भसम् भान को ठेस ऩहॉचं मा हभायी रनतट ठा ऩय आॊच
ू
आमं। ऐसे भं जूयत है रोगं की भानर्सकता सभझने की। हभं हभेिा इस फात
का ् मार यखना चाहहए कक उव हंने जो ककमा सो ककमा ऩय हभं उनकी फातं मा
तानं एिॊ क र ् म को अऩने हदर से नहीॊ रगामे यखना चाहहए। फ्कक, िैसे रोगं को
रनतिोधयहहत भानर्सकता का अ् छा उदाहयण ऩेि कय सकते हं। हो सकता है कक
आऩका ् मिहाय देख कय िे बी सफक ु छ बूरा कय आगे आऩके जीिन भं ककसी
रकाय का अियोध न ख़ा कयं।
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िैसा पर र्भरेगा, कय फुया तो होम फुया, जैसी कयनी िैसी बयनी, इधय के यहे न
उधय के यहे, एक हाथ से तारी नहीॊ फजती, आऩ बरे तो जग बरा, Good mind,
good find, इ् माहद भुहािये मा कहािते महद कोई आऩ से कहे मा आऩकी ओय
इॊगगत कय फोरे तो इसभं कोई अनत् मो्तत नहीॊ कक आऩ की कोई गरती नहीॊ
औय आऩ ऩाक-साप हं। कबी-कबी ऐसा हो जाता है कक हभ गरती कय के बी
सीनाजोयी कयने रग जाते हं, कपय फाद भं हभं अऩनी गरती का एहसास होता है
औय ऩछतािा बी होता है कक हभं ऐसा नहीॊ कयना चाहहए था। हभ भापी बी नहीॊ
भाॊगते हं ताकक हभ ककसी के साभने नीचे न हं। औय महद हभ भापी भाॊग बी
रेते हं तो हभं अपसोस रगा यहता है। सभम मही कहता है ककजो हो गमा सो हो
गमा, उसका ऩछतािा छो़कय हभं आगे फढना चाहहए त मंकक फीता हआ ऩर िाऩस
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नहीॊ आ सकता, ऩय कपय बी हभं अऩनी गरती को दोहयाना नहीॊ चाहहए।
2. दूसयं की गरती: जफ हभ क ु छ अ् छा कय यहे होते हं मा अऩने से ही भतरफ
यखते हं मा हभायी रोकवरमता फहत ् मादा हो जाती है तो रोगं को बी ईट माष मा
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फैचेनी सी हो जाती है। मा इसे मूॊ कहं कक क ु छ रोग दूसयं के जीिन भं ही ताक-
झाॊक कयने भं रगे यहते हं। ऐसे भं नन््चत तौय ऩय हभ दूसयं की गरती का
र्िकाय हो सकते हं अथिा, िे हभं र् म कयके ही गरती कयते हं, मा क ु छ ऐसा
कयते हं ्जससे हभाये आ् भसम् भान को ठेस ऩहॉचं मा हभायी रनतट ठा ऩय आॊच
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आमं। ऐसे भं जूयत है रोगं की भानर्सकता सभझने की। हभं हभेिा इस फात
का ् मार यखना चाहहए कक उव हंने जो ककमा सो ककमा ऩय हभं उनकी फातं मा
तानं एिॊ क र ् म को अऩने हदर से नहीॊ रगामे यखना चाहहए। फ्कक, िैसे रोगं को
रनतिोधयहहत भानर्सकता का अ् छा उदाहयण ऩेि कय सकते हं। हो सकता है कक
आऩका ् मिहाय देख कय िे बी सफक ु छ बूरा कय आगे आऩके जीिन भं ककसी
रकाय का अियोध न ख़ा कयं।
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