Page 68 - kaushal
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पॊ से यहते हं। अत:, जूयत है खुरकय जीने की। जफ हभने क ु छ बी गरत नहीॊ

ककमा तो डयना ककस फात का औय अऩने ितषभान भं खुि औय ननडय होकय जीना


चाहहए तथा ्जॊदगी का बयऩूय भजा रेना चाहहए।


5. सगे-सॊफॊचधमं मा दो् तं से अनफन: हभाये जीिन भं मह बी एक भह् िऩूणष ऺण


होता है जफ हभाये अऩने ही रोगं से सॊफॊध खयाफ हो जाते हं, कबी हभाये अऩने

आन-फान के कायण, तो कबी अभीयी-गयीफी के अॊतय के कायण, तो कबी रोगं के


फुये ् मिहाय मा यिैमे के कायण मा गरतपहभी भं हई गरती के कायण। इन सॊफॊधं

भं ऩनत-ऩ् नी, भाता-वऩता, बाई-फहन, रय् तेदायं, दो् तं तथा ऩरयिायं के सॊफॊध रभुख


हं। इस फदरते सभम के साथ अगय हभने अऩने सॊफॊधं को अहर्भमत माति् जोन

हदमे अथाषत कर नहीॊ ककमे तो नन््चत तौय ऩय रय् तं भं क़िाहि आना

् िाबाविक है। चाहे गरती ककसी की बी हो, हभं फीती फातं को बूरकय रय् तं भं


प् माय एिॊ सौहादष राने के र्रए ऩहर कयनी चाहहए। इस रकाय हभ अऩने ितषभान

एिॊ बविट म को एक फेहतय हदिा दे सकते हं एिॊ सुखी एिॊ आनॊदभम जीिन का

आनॊद रे सकते हं।


6. अनजानं से हई गरती मा अनजानं के साथ की गई गरती: कबी-कबी हभ

ककसी अनजान ् म्तत से उनकी गरती अथिा अऩनी फेिक ू पी मा गरती के

कायण इस कदय उरझ जाते हं कक हभ खुद को मा उनको सयेआभ फेइ् जत कयते
हं मा उऩहास का र्िकाय फनाते हं। हो सकता है कक फात हाथाऩाई तक आ जाए।


ऐसे भं जुयी हो जाता है कक हभ उन घिनाओॊ को माद कयके अऩने भन को ना
ही दुखी कयं औय ना ही दुयािेि भं रामं। त मंकक जैसे याहगीय या् ते भं ही छ ू ि

जाते हं िैसे ही हभं हदर दुखाने िारी घिना को बी फीच या् ते भं ही छो़ देना

चाहहए। हभायी मे ्जॊदगी बी एक मािा की तयह है रोग र्भरते हं, रफछ़ते हं।

उनके साथ रफतामे अ् छे ऩर हभेिा माद यहते हं रेककन फुये ऩर बी हभं हिस

भायते हं। इसर्रए हभं हभेिा अ् छे ऩर को माद कय के अऩनी आगे की ्जॊदगी

को खुिहार फनाना चाहहए।





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