Page 67 - kaushal
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3. अनजाने हई गरती: कबी-कबी हभ से बी गरनतमाॊ हो जाती हं औय रोगं से
ु
बी। मे गरनतमाॊ ककसी बी ऩऺ अथिा दोनं ऩऺ की ओय से जानफूझकय नहीॊ की
गई होती हं। इसभं र् मेक अथिा दोनं ऩऺ अपसोस ् मत त कयने भं ही रगा
यहता है। जूयत है बूरकय आगे फढने की। कौन नहीॊ चाहेगा ्जॊदगी की गा़ी
सुख, िाॊनत, खुिी, ऩाय् ऩरयक सौहादष औय बाईचाये के ऩियी ऩय अनियत दौ़ती यहे।
कहने भं कोई अनत् मो्तत नहीॊ होगी कक (् वयचचत):-
न ही तू गरत है,
न ही भं गरत,
दोनं ही अऩनी जगह सही,
मे भुझे बी है ऩता,
मे तुझे बी था ऩता,
हई थी जो घदित,
ु
ऩरयज्थनतवश,
अगय एक-दूसये
का ् थान फदर रं हभ,
तो त्रफसय जामे
मे चगरे-सशकवे,
औय बूर जामे गभ।
4. दूसयं की साजजश मा षडमॊर: मह हभाये साभा्जक जीिन का ऐसा ऩर होता है
्जसभं हभ हभेिा अऩनी सुयऺा को रेकय ् मादा गचॊनतत यहते हं। ् माऩाय,
रफजनेस, ऑकपस मा राईिेि ् तय ऩय फनते-रफग़ते रय् तं भं ही ् मादातय ऐसा
होता है। इसभं हभाये आसऩास जाने ऩहचाने रोग ही होते हं। कपय बी, हभ हभेिा
‘डडप ं ससव भोड’भं ही यहते हं। सभम तो फीत जाता है औय हभ उसी उधे़फुन भं
50
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बी। मे गरनतमाॊ ककसी बी ऩऺ अथिा दोनं ऩऺ की ओय से जानफूझकय नहीॊ की
गई होती हं। इसभं र् मेक अथिा दोनं ऩऺ अपसोस ् मत त कयने भं ही रगा
यहता है। जूयत है बूरकय आगे फढने की। कौन नहीॊ चाहेगा ्जॊदगी की गा़ी
सुख, िाॊनत, खुिी, ऩाय् ऩरयक सौहादष औय बाईचाये के ऩियी ऩय अनियत दौ़ती यहे।
कहने भं कोई अनत् मो्तत नहीॊ होगी कक (् वयचचत):-
न ही तू गरत है,
न ही भं गरत,
दोनं ही अऩनी जगह सही,
मे भुझे बी है ऩता,
मे तुझे बी था ऩता,
हई थी जो घदित,
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ऩरयज्थनतवश,
अगय एक-दूसये
का ् थान फदर रं हभ,
तो त्रफसय जामे
मे चगरे-सशकवे,
औय बूर जामे गभ।
4. दूसयं की साजजश मा षडमॊर: मह हभाये साभा्जक जीिन का ऐसा ऩर होता है
्जसभं हभ हभेिा अऩनी सुयऺा को रेकय ् मादा गचॊनतत यहते हं। ् माऩाय,
रफजनेस, ऑकपस मा राईिेि ् तय ऩय फनते-रफग़ते रय् तं भं ही ् मादातय ऐसा
होता है। इसभं हभाये आसऩास जाने ऩहचाने रोग ही होते हं। कपय बी, हभ हभेिा
‘डडप ं ससव भोड’भं ही यहते हं। सभम तो फीत जाता है औय हभ उसी उधे़फुन भं
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